Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
मूलपाठ में स्पष्ट उल्लेख है, इन दोषों के अतिरिक्त और भी इन दोषों की संभावना रहती है -
(१) कदाचित् पात्र किसी कारण के फूट गया हो, तो वह आहर-पानी लाने लायक नहीं रहेगा।
(२) किसी धर्मद्वेषी ने साधुओं को बदनाम करने के लिए कोई शस्त्र, विष या अन्य अकल्प्य, अग्राह्य वस्तु चुपके से रख दी हो।
(३) कोई बिच्छु या सांप पात्र में घुस कर बैठ गया हो तो आहार लेते समय हठात् काट खाएगा अथवा उसे देखे-भाले बिना अंधाधुंधी में गर्म आहार या पानी लेने से वह आहार या पानी भी विषाक्त हो जाएगा, जीव की विराधना तो होगी ही।
.. (४) पात्र में कोई खट्टी चीज रह गई तो दूध आदि पदार्थ लेते ही फट जाएगा। अतः साधु को उपाश्रय से निकलते समय, गृहस्थ के यहाँ प्रवेश करते समय और भोजन करना प्रारम्भ करने से पूर्व पात्र-प्रतिलेखन-प्रमार्जन करना आवश्यक है। १ सचित्त संसृष्ट पात्र को सुखाने की विधि
६०३. से भिक्खू वा २ गाहावति जाव समाणे सिया से परो आहटु अंतो पडिग्गहगंसि सीओदगं परिभाएत्ता णीहट्ट दलएजा, तहप्पगारं पडिग्गहगं परहत्थंसि वा परपायंसि वा अफासुयं जाव णो पडिगाहेजा। से य आहच्च पडिग्गाहिए सिया, खिप्पामेव २ उदगंसि साहरेजा, सपडिग्गहमायाए व णं परिट्ठवेज्जा, ससणिद्धाए व णं भूमीए नियमेजा।
६०४. से भिक्खू वा ३ उदउल्लं २ वा ससणिद्धं वा पडिग्गहं णो आमज्जेज वा जाव पयावेज वा।अह पुणेवं जाणेजा विगदोदए मे पडिग्गहए छिण्ण-सिणेहे, तहप्पगारं पडिग्गहं ततो संजयामेव आमजेज वा जाव पयावेज वा।
१. आचारांग वृत्ति, मूलपाठ पत्रांक ४०० २. इसके बदले पाठान्तर है-'सिया से खिप्यामेव उदगंसि आहरेजा'। अर्थ होता है—कदाचित् वह गृहस्थ ___ शीघ्र ही अपने जल पात्र में उसे वापस डाल दे। ३. चूर्णिकार 'उदउल्लं वा ससणिद्धं वा' इस पाठ के बदले कोई दूसरा पाठ मानकर पात्रैषाणाध्ययन की यहीं
समाप्ति मानते हैं। वह पाठ इस प्रकार है-"उदउल्ल-ससणिद्धं पडिग्गहगं आमज्ज पमज्ज अंतो संलिहति, बाहिं णिल्लिहति, उव्वलेति, उव्वट्टेति, पत्ताविज। इति पात्रैषणा समाप्ता।" अर्थात्-जल से आई और सस्निग्ध पात्र को थोड़ा या बहुत प्रमार्जन करके अंदर से लेपरहित करता है, फिर बाहर से लेपरहित करता है, उपलेपन करता है, उद्वर्तन करता है, (जलरहित करता है) फिर थोड़ा या
अधिक धूप में सुखाता है। इस प्रकार पात्रैषणा समाप्त हुई। इस पाठ को देखते हुए किसी-किसी प्रति में
'आमज्जेज वा' के बाद 'पमजेज वा' का पाठ पाना है। ४. 'आमज्जेज वा' से 'पयावेज वा' तक के पाठ को सूत्र ३५३ के अनुसार सूचित करने क लिए 'जाव'
शब्द है।