Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
कोमल टुकड़े अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित हैं, किन्तु तिरछे कटे हुए नहीं हैं, तो उन्हें पूर्ववत् जानकर ग्रहण न करे, यदि वह यह जान ले कि वे इक्षु-अवयव अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं तथा तिरछे कटे हुए भी हैं तो उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर वह ग्रहण कर सकता है।
६३२. यदि साधु या साध्वी (किसी कारणवश) लहसुन के वन (खेत) पर ठहरना चाहे तो पूर्वोक्त विधि से उसके स्वामी या नियुक्त अधिकारी से क्षेत्र-काल की सीमा खोलकर अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करके रहे। अवग्रह ग्रहण करके वहाँ रहते हुए किसी कारणवश लहसुन खाना चाहे तो पूर्व सूत्रवत् दो बातें-अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तथा तिरछे न कटे हुए हों तो न ले, यदि ये दोनों बातें न हों, और वह तिरछा कटा हुआ हो तो पूर्वोक्त विधिवत् ग्रहण कर सकता है। इसके तीनों आलापक पूर्वसूत्रवत् समझ लेने चाहिए। विशेष इतना ही है कि यहाँ 'लहसुन' का प्रकरण
है।
यदि साधु या साध्वी (किसी कारणवश) लहसुन, लहसुन का कंद, लहसुन की छाल या छिलका या रस अथवा लहसुन के गर्भ का आवरण (लहसुन का बीज) खाना-पीना चाहे और उसे ज्ञात हो जाए कि यह लहसुन यावत् लहसुन का बीज अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है तो पूर्ववत् जानकर ग्रहण न करे, यदि वह अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित है, किन्तु तिरछा कटा हुआ नहीं तो भी उसे न ले, यदि तिरछा कटा हुआ हो तो पूर्ववत् प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर ले सकता है।
विवेचन-विभिन्न अवग्रहों की ग्रहण-विधि और कर्त्तव्य-सूत्र ६२१ से ६३२ तक १२ सूत्रों में अवग्रह-ग्रहण के विभिन्न मुद्दों पर विविध पहलुओं से विचार प्रस्तुत किये गए हैं। इनमें विशेष रूप से ४ बातों का निर्देश है -
(१) किसी स्थान रूप अवग्रह की अनजा लेने की विधि. (२) अवग्रह-ग्रहण करने के बाद वहाँ निवास करते समय साधु का कर्तव्य,
(३) आम्रवन, इक्षुवन एवं लहसुन के वन में अवग्रह-ग्रहण करके ठहरने पर ये तीनों वस्तुएँ यदि अप्रासुक और अनेषणीय हों, तो सेवन करने का निषेध और
(४) यदि ये वस्तुएँ प्रासुक और एषणीय हों और उस-उस क्षेत्र के स्वामी या अधिकारी से यथाविधि प्राप्त हों तो साधु के लिए ग्रहण करने का विधान। १
आवासस्थानरूप अवग्रह-ग्रहण में सीमाबद्धता क्यों? – अगर स्थान रूप अवग्रहग्रहण में इतना स्पष्टीकरण अवग्रहदाता से न किया जाए तो मुख्य रूप से चार खतरों की सम्भावना है - (१) साधु वहाँ सदा के लिए या चिरकाल तक जम जाएँगे, ऐसी स्थिति में कदाचित् शय्यातर
१. आचारांग वृत्ति एवं मूलपाठ पत्रांक ४०४-४०५ के आधार पर