Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
(६) छठी प्रतिमा -यह भी जिनकल्पिक आदि मुनियों की या जिनभगवान् (वीतराग) की होती है। जैसे—'मैं जिस अवग्रह (स्थानरूप अवग्रह) को ग्रहण करूँगा, उसी में अगर शय्यासंस्तारक (घास आदि) होगा तो ग्रहण करूँगा (बाहर से अन्दर ले जाने या अन्दर से बाहर घास आदि संस्तारक निकालने का इसमें पूर्ण निषेध है) अथवा, उत्कटुक या निषद्या-आसन से बैठकर रात्रि बिता दूंगा।"
(७) सातवीं प्रतिमा - यह भी जिनकल्पिक आदि मुनियों की या वीतरागों की होती है। जैसे—''मैं जिस अवग्रह को ग्रहण करूँगा, वहाँ यदि पहले से ही स्वाभाविक रूप से पृथ्वी-शिला या काष्ठशिला आदि बिछाई हुई होगी तो ग्रहण करूँगा, अन्यथा उत्कटुक या निषद्या-आसन से बैठकर रात बिता दूँगा।"
सातों प्रतिमाओं में से किसी भी एक प्रतिमा का धारक धातु पिण्डैषणा-प्रतिमा-प्रतिपन्न की तरह आत्मोत्कर्ष, अभिमान आदि से रहित, समभाव में स्थिर होकर रहे। १
"उवल्लिस्सामि" आदि पदों का अर्थ—उवल्लिस्सामि—आश्रय लूँगा, निवास करूँगा। अहासमण्णागते यथागत, पहले से जैसा है, वैसा ही। अहासंथडं—जैसा बिछा हुआ हो, जो भी संस्तारक हो, स्वाभाविक रूप से बिछा हो। २ पंचविध अवग्रह
६३५. सुयं मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं – इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं पंचविहे. उग्गहे पण्णत्ते, तंजहा-देविंदोग्गहे १,राओग्गहे३ २,गाहावतिउग्गहे ३,सागारियउग्गहे ४, साधम्मियउग्गहे ५।
६३५. हे आयुष्मन् शिष्य! मैंने उन भगवान् से इस प्रकार कहते हुए सुना है कि इस जिन प्रवचन में स्थविर भगवन्तों ने पांच प्रकार का अवग्रह बताया है, जैसे कि-(१) देवेन्द्र-अवग्रह, (२) राजावग्रह, (३) गृहपति-अवग्रह, (४) सागारिक-अवग्रह और (५) साधर्मिक अवग्रह।
विवेचन–(पांच प्रकार के अवग्रह)- प्रस्तुत सूत्र में पांच प्रकार के अवग्रह, अवग्रह दाताओं की दृष्टि से बताए हैं । अर्थात् देवेन्द्र सम्बन्धी अवग्रह, राजा सम्बन्धी अवग्रह आदि। अथवा देवेन्द्र का अवग्रह, राजा का अवग्रह आदि पांच प्रकार के अवग्रहों की याचना साधु के लिए जिनशासन में विहित है।
१. (क) आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृष्ठ २२५
(ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक ४०३ २. आचारांग वृत्ति पत्रांक ४०६ . ३. 'राओग्गहे' के बदले पाठान्तर हैं -रायाउग्गहे, रायोउग्गहे, राय-उग्गहे, राउग्गहे, राउउग्गहे, रायोग्गहे आदि।
अर्थ एक-सा है।