Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम अध्ययन : सूत्र ६३८-३९
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दो हाथ के फासले पर-सोए।
निष्कर्ष यह है "स्थानैषणा के सम्बन्ध में चूर्णिकार-सम्मत बहुत-से सूत्रपाठ हैं, जो वर्तमान में आचारांग सूत्र में उपलब्ध नहीं हैं।" २ चार स्थान प्रतिमा
६३८. इच्चेताई आयतणाई अवातिकम्म अह भिक्खू इच्छेज्जा चउहि पडिमाहिं ठाणं ठाइत्तए।
[१] तत्थिमा पढमा पडिमा-अचित्तं खलु उवसज्जेजा, अवलंबेजा, काएण विपरकम्मादी ३, सवियारं ठाणं ठाइस्सामि। पढमा पडिमा।
[२] अहावरा दोच्चा पडिमा अचित्तं खलु उवसजेजा, अवलंबेजा, णो काएण विप्परकम्मादी, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति दोच्चा पडिमा।
[३] अहावरा तच्चा पडिमा—अचित्तं खलु उवसजेज्जा, अवलंबेज्जा, णो काएण विप्परिकम्मादी, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि त्ति तच्चा पडिमा।
[४] अहावरा चउत्था पडिमा—अचित्तं खलु उवसज्जेजा, णो अवलंबेज्जा, णो काएण विप्परिकम्मादी, णो सवियारं ठाणं ठाइस्सामि, वोसट्टकाए वोसट्ठकेस-मंसु-लोमणहे संणिरुद्धं वा ठाणं ठाइस्सामि त्ति४चउत्था पडिमा।
६३९. इच्चेयासिं५ चउण्हं पडिमाणं जाव पग्गहियतरायं विहरेज्जा, णेव किंचि वि वदेजा।
६३८. इन पूर्वोक्त तथा वक्ष्यमाण कर्मोपादानरूप दोषस्थानों को छोड़कर साधु इन (आगे १. (क) आचारांग सूत्र मूलपाठ सू. ४१९ से ४४१ तथा ४४३ से ४४५ तक वृत्ति सहित।
(ख) आचारांग चूर्णि मू. पाठ टि. पृ. २२८ "इदाणि सव्वेसि सुत्तालावगा - से भिक्खु वा भिक्खूणीवा अभिकंखेज ठाणं ठाइत्तए,सं अंडादिस ण ठाएजा।अणंतरहियाए पुढवादी जाव आइण्णसलेक्ख आलावगसिद्धा। गामादिसु एगो वा २,३,४, ५ तेहिं सद्धिं एगततो ठाणं ठाएमाणे आलिंगणा वज्जेज्ज। जम्हा एते दोसा तम्हा अंतरा सुवंति, दो हत्था अणाबाधा।" आचारांग मूलपाठ टिप्पण-सम्पादक का मत-"इत आरभ्य बहुषु सूत्रेषु चूर्णिकृतां सम्मतो भूयान् सूत्रपाठः सम्प्रति आचारांगसूत्रे नोपलभ्यत इति ध्ययेम्।" पृ. २२८। "विप्परिकम्मादी" के बदले पाठान्तर हैं-"विप्परकम्मादी','विपरिकम्मादी, 'विप्परक्कम्मादी।' अर्थ
समान है। ४. चूर्णिकार के अनुसार 'त्ति चउत्था पडिमा' (सू. ६३८/४) के बाद ही स्थानसप्तिका' अध्ययन समाप्त हो
जाता है। आगे के दो सूत्र उनके मतानुसार नहीं है। पढमं ठाण सत्तिकर्य समाप्तम्। पृ. २२९ ५. यहाँ 'इच्चेयासिं' के बदले पाठान्तर है-इच्चेयाणं। ६. यहाँ जाव' शब्द से 'पडिमाणं' से 'पग्गहियतरायं' तक का समग्र पाठ सू. ४१० के अनुसार समझें।