Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
५६०. इच्चेताणं चउण्हं पडिमाणं जहा पिंडेसणाए ।
५५९.इन (पूर्वोक्त) दोषों के आयतनों (स्थानों) को छोड़कर चार प्रतिमाओं (अभिग्रहविशेषों) से वस्त्रैषणा करनी चाहिए।
[१] पहली प्रतिमा- वह साधु या साध्वी मन में पहले संकल्प किये हुए वस्त्र की याचना करे, जैसे कि- जांगमिक, भांगिक, सानज, पोत्रक, क्षौमिक या तूलनिर्मित वस्त्र (इन वस्त्र प्रकारों में से एक प्रकार के वस्त्र ग्रहण का मन में निश्चय करे), उस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक और एषणीय होने पर ग्रहण करे।
[२] दूसरी प्रतिमा - वह साधु या साध्वी (गृहस्थ के यहाँ) वस्त्र को पहले देखकर गृहस्वामी यावत् नौकरानी आदि से उसकी याचना करे। देखकर इस प्रकार कहे-आयुष्मन गहस्थ भाई! अथवा बहन ! क्या तुम इन वस्त्रों में से किसी एक वस्त्र को मुझे दोगे/ दोगी? इस प्रकार साधु या साध्वी पहले स्वयं वस्त्र की याचना करे अथवा वह गृहस्थ दे तो प्रासुक एवं एषणीय होने पर ग्रहण करे। यह दूसरी प्रतिमा हुई।
[३] तीसरी प्रतिमा - साधु या साध्वी (गृहस्थ द्वारा परिभुक्त प्रायः) वस्त्र के सम्बन्ध में जाने, जैसे कि- अन्दर पहनने के योग्य या ऊपर पहनने के योग्य चादर आदि अन्तरीय। तदनन्तर इस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे या गृहस्थ उसे स्वयं दे तो उस वस्त्र को प्रासुक एवं एषणीय होने पर मिलने पर ग्रहण करे। यह तीसरी प्रतिमा हुई।
[४] चौथी प्रतिमा - वह साधु या साध्वी उज्झितधार्मिक (गृहस्थ के द्वारा पहनने के बाद फेंके हुए) वस्त्र की याचना करे। जिस वस्त्र को बहुत से अन्य शाक्यादि भिक्षु यावत् भिखारी लोग भी लेना न चाहें, ऐसे उज्झित-धार्मिक (फेंकने योग्य) वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा वह गृहस्थ स्वयं ही साधु को दे तो उस वस्तु को प्रासुक और एषणीय जानकर ग्रहण कर ले। यह चौथी प्रतिमा हुई।
५६०. इन चारों प्रतिमाओं के विषय में जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में वर्णन किया गया है, वैसे ही यहाँ समझ लेना चाहिए।,
विवेचन – वस्त्रैषणा से सम्बन्धित चार प्रतिज्ञाएँ - पिण्डैषणा-अध्ययन में जैसे पिण्डैषणा की ४ प्रतिज्ञाएँ बताई गई हैं, वैसे ही यहाँ वस्त्रैषणा से सम्बन्धित ४ प्रतिज्ञाएँ बताई गई हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. उद्दिष्टा, २. प्रेक्षिता,३. परिभुक्त पूर्वा और ४. उज्झितधार्मिक।
चारों प्रतिज्ञाओं का स्वरूप इस प्रकार है - (१) मैं पहले से संकल्प या नामोल्लेख करके वस्त्र की याचना करूँगा। (२) मैं वस्त्र को स्वयं देखकर ही याचना करूँगा।
(३) अन्दर पहनने के या बाहर ओढने के जिस वस्त्र को दाता ने पहले उपयोग कर लिया है, उसी को ग्रहण करूँगा।