Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पंचम अध्ययन : द्वितीय उद्देशक: सूत्र ५८७
'पावगं' का अर्थ चूर्णिकार के अनुसार है नहीं करते, देखने में असुन्दर हो ।
बृहत्कल्पसूत्र (१/४५) तथा भाष्य में हृताहृतप्रकरण के अन्तर्गत साधुओं के वस्त्र चोरों आदि द्वारा छीने जाने के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक विवेचन है ।
पापक,
जिसे लोग आँखों से देखना पसंद
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५८७. एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा २ सामग्गियं जं सव्वट्ठेहिं सहिएहिं सदा जज्जासि त्ति बेमि ।
५८७. यही (वस्त्रैषणा — विशेषतः वस्त्रपरिभोगैषणा - विवेक ही ) वस्तुतः साधु-साध्वी का सम्पूर्ण ज्ञानादि आचार है। जिसमें सभी अर्थों में ज्ञानादि से सहित होकर सदा प्रयत्नशील रहे ।
ऐसा मैं कहता हूँ ।
॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
॥ ' वस्त्रैषणा' पंचममध्ययनं समाप्तं ॥
१. आचारांग चूर्णि मू० पा० टि० पृ० २१२ में 'पावगं णाम अचोक्खं मण्णति ।'