Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ अध्ययन : द्वितीय उद्देशक : सूत्र ५४९-५०
२३१ .५४९. साधु या साध्वी कई शब्दों को सुनते हैं, तथापि उनके विषय में (राग-द्वेष युक्त भाव से) यों न कहे, जैसे कि - यह मांगलिक शब्द है, या यह अमांगलिक शब्द है। इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातक भाषा साधु या साध्वी न बोले।
५५०. यद्यपि साधु या साध्वी कई शब्दों को सुनते हैं, तथापि उनके सम्बन्ध में कभी बोलना हो तो (राग-द्वेष से रहित होकर) सुशब्द को यह सुशब्द है' और दुःशब्द को 'यह दुःशब्द है' इस प्रकार की निरवद्य यावत् जीवोपघातरहित भाषा बोले।
इसी प्रकार रूपों के विषय में – कृष्ण को कृष्ण, यावत् श्वेत को श्वेत कहे, गन्धों के विषय में (कहने का प्रसंग आए तो) सुगन्ध को सुगन्ध और दुर्गन्ध को दुर्गन्ध कहे, रसों के विषय में भी (तटस्थ होकर) तिक्त को तिक्त, यावत् मधुर को मधुर कहे, इसी प्रकार स्पर्शों के विषय में कहना हो तो कर्कश को कर्कश यावत् उष्ण को उष्ण कहे।
विवेचन- पंचेन्द्रिय विषयों के सम्बन्ध में भाषा-विवेक - इन दो सूत्रों में शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श, इन पञ्चेन्द्रिय विषयों को अपनी-अपनी इन्द्रियों के साथ सन्निकर्ष होने पर साधु को उनके सम्बन्ध में क्या और कैसे शब्द बोलना चाहिए, यह विवेक बताया है।
स्थानांगसत्र में पाँचों इन्द्रियों के २३ विषय और २४० विकार बताए गए हैं. वे इस प्रकार हैं१. श्रोत्रेन्द्रिय के ३ विषय - जीव शब्द, अजीव शब्द, मिश्र शब्द। २ चक्षुरिन्द्रिय के ५ विषय - काला, नीला, लाल, पीला, सफेद वर्ण। ३. घ्राणेन्द्रिय के २ विषय - सुगन्ध और दुर्गन्ध । ४. रसनेन्द्रिय के ५ विषय - तिक्त, कटु, कषैला, खट्टा और मधुर रस।
५. स्पर्शेन्द्रिय के ८ विषय - कर्कश (खुरदरा), मृदु, लघु, गुरु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण स्पर्श।
श्रोत्रेन्द्रिय के १२ विकार - तीन प्रकार के शब्द, शुभ और अशुभ (३ x २ = ६) इन पर राग और द्वेष [६४२-१२] ।
चक्षुरिन्द्रिय के ६० विकार - काला आदि ५ विषयों के सचित्त, अचित्त, मिश्र ये तीन-तीन प्रकार, इन १५ के शुभ और अशुभ दो-दो प्रकार, और इन ३० पर राग और द्वेष, यों कुल मिलाकर साठ।
घ्राणेन्द्रिय के १२ विकार - दो विषयों के सचिस-अचित्त-मिश्र ये तीन-तीन प्रकार, फिर ६ पर राग-द्वेष होने से १२ हुए।
रसनेन्द्रिय के ६० विकार - चक्षुरिन्द्रिय की तरह उसके पाँचों विषयों के समझें। स्पर्शेन्द्रिय के ९६ विकार - ८ विषय, सचित्त-अचित्त-मिश्र तीन-तीन प्रकार के होने
१. (क) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३९१
(ग) स्था० ५ सू० ३९० (च) प्रज्ञापनासूत्र पद २३ उद्दे० २
(ख) स्थानांग १ सू० ४७ (घ) स्था० ५ सू० ५६९