Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय अध्ययन : प्रथम उद्देशक : सूत्र ४६९-७१
६१७५) ___ (३) कई आचार्य पांच और दस दोनों मिलाकर १५ दिन व्यतीत होने पर, ऐसा अर्थ करते
विहारचर्या में दस्यु-अटवी आदि उपद्रव
४६९. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जमाणे पुरओ जुगमायं पेहमाणे दट्टण तसे पाणे उद्धट्ट पादं रीएज्जा, साहट्ट पादं रीएजा', वितिरिच्छं वा कट्ट पादं रीएज्जा, सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा, ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा।
४७०. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूंइजमाणे, अंतरा से पाणाणि वा बीयणि वा हरियाणी वा उदए वा मट्टिया वा अविद्धत्था सति परक्कमे जाव णो उज्जुयं गच्छेज्जा, ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेजा।
४७१. सेभिक्खूवा २ गामाणुगामंदूइज्जमाणे, अंतरा से विरूवरूवाणि पच्चंतिकाणि दसुगायतणाणि मिलक्खूणि अणारियाणि दुस्सण्णप्पाणि दुप्पण्णवणिजाणि अकालपडिबोहीणि अकालपरिभोईणि, सति लाढे विहाराए संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहारवत्तियाए पवजेजा गमणाए।
केवली बूया-आयाणमेयं।
तेणं बाला 'अयं तेणे, अयं उवचरए, अयं ततो आगते'त्ति कट्टतं भिक्खूअक्कोसेज वा २ जाव उवद्दवेज वा, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पादपुंछणं अच्छिदेज वा भिंदेजा वा ४ अवहरेज वा परिवेज ५ वा। जह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जंतहप्पगाराणि विरूवरूवाणि पच्चंतियाणि दसुगायतणाणि ६ जाव विहारवत्तियाएणो पवजेजागमणाए। ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेजा। १. (क ) आचारांग चूर्णि मू० पाठ टिप्पणी पृ० १७१
(ख) आचारांग वृत्ति पत्रांक ३७६
(ग) आचारांग अर्थागम (हिन्दी) पृ० ११६ २. इसके स्थान पर पाठान्तर है-साहटु पायं रीएज्जा, उक्खिप्पपायं रीएज्जा। ३. 'अक्कोसेज वा' से लेकर उवद्दवेज वा तक का पाठ सूत्र ४२२ के अनुसार सूचित करने के लिए जाव
शब्द है। ४. 'अच्छिदेज वा भिदेज वा' के स्थान पर पाठान्तर है-'अच्छिंदेज्जा अभिंदेजा आछिंदेज्जा आभिंदेजा।'
अर्थ समान हैं। ५. परिट्ठवेज वा के स्थान पर परिभवेज वा पाठ है, अर्थ होता है-नीचा दिखाए, दबाए।
'जाव' शब्द से यहाँ दसुगायतणाणि से लेकर विहारवत्तियाए तक का पाठ इसी सूत्र के पूर्व पाठ के अनुसार समझें।