Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
से मन एवं वचन को आगे-पीछे न करके साधु-विचरण करे। वह शरीर और उपकरणों आदि पर मूर्च्छा न करके तथा अपनी लेश्या को संयमबाह्य प्रवृत्ति में न लगाता हुआ अपनी आत्मा को एकत्व भाव में लीन करके समाधि में स्थित अपने शरीर उपकरण आदि का व्युत्सर्ग करे ।
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इस प्रकार नौका के द्वारा पार करने योग्य जल को पार करने के बाद जिस प्रकार तीर्थंकरों ने विधि बताई है उस विधि का विशिष्ट अध्यवसायपूर्वक पालन करता हुआ विचरण करे ।
विवेचन - नौकारोहण : विघ्न-बाधाएँ और समाधान – जहाँ इतना जल हो कि पैरों से चलकर मार्ग पार नहीं किया जा सकता, वहाँ साधु को जलयान में बैठकर उस मार्ग को पार करने का शास्त्रकार ने विधान किया है। साथ ही यह भी बताया है कि साधु किस प्रकार की नौका में किस विधि से चढ़े ? नौका में बैठने के बाद नाविक द्वारा नौका को रस्सी से बाँधने, डांड आदि से चलाने, नौका में भरे हुए पानी को बाहर निकालने, छिद्र बन्द करने आदि सावद्य कार्यों के करने का कहे जाने पर साधु न उन्हें स्वीकार करे, और न ही तेजी से प्रविष्ट होते हुए जल से डूबती-उतराती नौका को देखकर नाविक को सावधान करे।
निष्कर्ष यह है कि शास्त्रकार ने नौकारोहण के सम्बन्ध में साधु को इन ९ सूत्रों द्वारा विशेषतया ४ बातों का विवेक बताया है (१) नौका में चढ़ने से पूर्व, (२) नौका में चढ़ते समय, (३) नौका में बैठने के बाद और (४) नदी पार करके नौका से उतरने के बाद । १
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सूत्र ४८२ द्वारा एक बात स्पष्ट ध्वनित होती है, जिसका संकेत 'एतप्पगारं मणं वा वियोसेज्ज समाधी' इन दो पंक्तियों द्वारा शास्त्रकार ने कर दिया है। जिस समय नौका में अत्यधिकं पानी बढ़ जाए और वह डूबने लगे, उस समय साधु क्या करे? वह मन में आर्त्तध्यान का भाव न लाए, न ही शरीर और उपकरणादि के प्रति आसक्ति रखे । एकमात्र आत्मैकत्वभाव में लीन होकर शुद्ध आत्मा का स्मरण करता हुआ समाधिभाव में अचल रहे। जल समाधि लेने का अवसर आए तो शरीरादि का विसर्जन करने में तनिक भी न घबराए और यदि शुभयोग से नौका डूबती बच जाए, और सुरक्षित रूप से साधु नौका से जलमार्ग पार कर ले तो यह तीर्थंकरोक्त विधि का पालन करके फिर आगे बढ़े। २
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'उस्सिचेज्जा' आदि पदों के अर्थ - उस्सिचेज्जा -नाव में भरे हुए पानी को उलीच कर बाहर निकाले, सण्णं- - कीचड़ में फंसी हुई, उप्पीलावेज्जा- - बाहर निकाले । उड्डगामिणी • अनुस्रोतगामिनी, अहेगामिणिं • अधोगामिनी – प्रतिस्रोतगामिनी, तिरछी (आड़ी) गमन करने वाली, नदी के इस पार से उस पार तक जाने
- ऊर्ध्वगामिनी तिरियगामिणिं वाली । ३
१. टीका पत्र ३७८ के आधार पर
२. आचारांग चूर्णि मूल पाठ टिप्पणी पृ० १७८
३. आचारांग चूर्णि, मूल पाठ टिप्पणी पृ० १७४