Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
४७२. से भिक्खू वा २ गामागुणामं दूइज्जमाणे, अंतरा से अरायाणि वा जुवरायाणि वा दोरज्जाणि वा वेरज्जाणि वा विरुद्धरज्जाणि वा, सति लाढे विहारए संथरमाणेहिं जणवएहिं णो विहारवत्तिया पवज्जेज्जा गमणाए । केवयी बूया - आयाणमेतं ।
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णं बाला अयं तेणे तं चेव जाव १ गमणाए। ततो संजयामेव गामागुणामं दूइजेज्जा । ४७३. से भिक्खू वा २ गामाणुगामं दूइज्जेज्जा, अंतरा से विहं सिया, से ज्जं पुण विहं जाणेज्जा -एगाहेण वा दुयाहेण वा तियाहेण वा चउयाहेण वा पंचाहेण वा पाउणज्जा वाणो वा पाउणेज्जा । तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं सति लाढे जावरे गमणाए । केवली बूया - आयाणमेतं | अंतरा से वासे सिया पाणेसु वा पणएसु वा बीएसु वा हरएिसु वा उदसु वा मट्टियाए वा अविद्धत्थाए । अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारं विहं अणेगाहगमणिज्जं जाव णो गमणाए । ततो संजयामेव गामाणुगामं दुइजेजा ।
युगमात्र
४६९, साधु या साध्वी एक ग्राम से दूसरे ग्राम विहार करते हुए अपने सामने की (गाड़ी के जुए के बराबर चार हाथ प्रमाण) भूमि को देखते हुए चले और मार्ग में त्रसजीवों को देखे तो पैर के अग्रभाग को उठाकर चले। यदि दोनों ओर जीव हों तो पैरों को सिकोड़ कर चले अथवा दोनों पैरों को तिरछे टेढ़े रखकर चले । (यह विधि अन्य मार्ग के अभाव में बताई गई है) यदि कोई दूसरा साफ मार्ग हो, तो उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाए, किन्तु जीवजन्तुओं से युक्त सरल (सीधे) मार्ग से न जाए। (निष्कर्ष यह है कि ) उसी ( जीव-जन्तु रहित) मार्ग से यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विचरण करना चाहिए ।
४७०. साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए यह जाने कि मार्ग में बहुत से त्रस प्राणी हैं, बीज बिखरे हैं, हरियाली है, सचित्त पानी है या सचित्त मिट्टी है, जिसकी योनि विध्वस्त नहीं हुई है, ऐसी स्थिति में दूसरा निर्दोष मार्ग हो तो साधु-साध्वी उसी मार्ग से यतनापूर्वक जाएँ, किन्तु उस (जीवजन्तु आदि से युक्त ) सरल (सीधे) मार्ग से न जाएँ। (निष्कर्ष यह है कि) उसी (जीवजन्तु आदि से रहित) मार्ग से साधु-साध्वी को ग्रामानुग्राम विचरण करना चाहिए ।
४७१. ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिलें तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों का आचार समझाया जा सकता है, जिन्हें दुःख से, धर्म-बोध देकर अनार्यकर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल (कुसमय) में जागनेवाले, कुसमय में खाने-पीनेवाले मनुष्यों के स्थान मिलें तो अन्य ग्राम आदि में विहार हो सकता है या अन्य आर्यजनपद विद्यमान हों,
१. यहाँ जाव शब्द से अयं तेणे से लेकर गमणाए तक का पाठ सूत्र ४७१ के अनुसार समझें । २. णो वा पाउणेज्जा के स्थान पर पाठान्तर है—नो पाउणेज्ज वा, नो वा पाउणेज्ज वा । ३. यहाँ जाव शब्द से लाढ़े से लेकर गमणाए तक का पाठ सू० ४७२ के अनुसार समझें ।