Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
हैं—(१) स्त्री-संसक्तस्थान, (२) पशु-संसक्त स्थान और (३) नपुंसक-संसक्त स्थान। १
प्रस्तुत प्रसंग में ब्रह्मचर्य, अहिंसा तथा अपरिग्रह तीनों दृष्टियों से ६ प्रकार के निवासस्थानक वर्जित बताए हैं- (१) स्त्रियों से संसक्त, (२) पशुओं से संसक्त, (३) नपुंसकसंसक्त,(४) क्षुद्र मनुष्यों से या नन्हे शिशुओं से संसक्त, (५) हिंस्र एवं क्षुद्र प्राणियों से संसक्त एवं (२) सागारिक-गृहस्थ तथा उसके परिवार से संसक्त उपाश्रय।
पशुओं से संसक्त धर्मस्थान में रहने से ब्रह्मचर्य हानि के अतिरिक्त अविवेकी गृहस्थ यदि पशुओं को भूखे-प्यासे रखता है, समय पर चारा-दाना नहीं देता, पानी नहीं पिलाता, या अकस्मात् आग लग गई, ऐसी स्थिति में बंधनबद्ध पशुओं का आर्तनाद साधु से देखा नहीं जाएगा, गृहस्थ की अनुपस्थिति में उसे करुणावश पशुओं के लिए यथायोग्य करना या कहना पड़ सकता है। नपुंसक-संसक्त स्थान तो ब्रह्मचर्य हानि की दृष्टि से वर्जित है ही। क्षुद्र मनुष्यों से संसक्त मकान में रहने से वे छिद्रान्वेषी, द्वेषी एवं प्रतिकूल होकर बराबर साधु को हैरान और बदनाम करते रहेंगे। शिशुओं से युक्त स्थान में रहने से साधु को उन नन्हें बच्चों को देख कर मोह उत्पन्न हो
सकता है। उनकी माताएँ साधुओं के पास उन्हें लाएँगी, छोड़ देंगी, तब स्वाध्याय, ध्यान आदि क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होगी। सिंह, सर्प, बाघ आदि हिंस्र प्राणियों से युक्त स्थान में रहने से साधु के मन में भय पैदा होगा, निद्रा नहीं आएगी। स्त्रियों से संसक्त स्थान में रहने से ब्रह्मचर्यहानि की सम्भावना तो है ही। अन्यतीर्थिक साधुओं एवं भिक्षाजीवी परिव्राजकों आदि के साथ रहने में भी अपने संयम को खतरा है, अपरिपक्व साधक उनकी बातों से बहक़ भी सकता है, . गृहस्थ और उसके परिवार से संसक्त मकान में निवास भी अनेक खतरों से भरा है।
कुछ खतरों का संकेत यहाँ शास्त्रकार ने किया है- (१) भिक्षु के अकस्मात् दुःसाध्यरोग हो जाने पर गृहस्थ द्वारा उसके उपचार करने में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पतिकाय तथा त्रसकाय की विराधना की सम्भावना, (२) परस्पर लड़ाई-झगड़ों से साधु के चित्त में संक्लेश, (३) गृहस्थ अपने लिए खाने-पकाने के साथ-साथ साधु के लिए भी अग्नि-समारम्भ करके भोजन बनाएगा। (४) गृहस्थ के घर में विविध आभूषणों तथा सुन्दर युवतियों को देखकर पूर्वाश्रम स्मरण से मोहोत्पत्ति तथा कामोत्तेजना की सम्भावना। (५) अधिक स्त्री संसर्ग से पुत्राभिलाषिणी स्त्री के साथ सहवास की सम्भावना। इन सब सम्भावनाओं को ध्यान में रखकर शास्त्रकार ने तीर्थंकर भगवान् द्वारा साधु के लिए उपदिष्ट प्रतिज्ञा, हेतु कारण और उपदेश को बार-बार दुहराकर खतरों से सावधान किया है।
१. (क) स्थानांगसूत्र स्था. ९ उ०१ (ख) उत्तराध्ययन सूत्र अ. १६/१ २. (क) आचारांगसूत्र वृत्ति पत्रांक ३६१, ३६२ के आधार पर ३. (ख) आचारांगचूर्णि मूलपाठ टिप्पण पृ. १४७ (मुनि जम्बूविजयजी)