Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
अहं भिक्खूणं पुव्वेवदिट्ठा १ ४ जं तहप्पगारे उवस्सए ठाणं वा २३ चेतेजा।
४२८. आयाणमेतं भिक्खुस्स गाहावतीहिं सद्धिं संवसमाणस्स। इह खलु गाहावतिस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवे भोयणजाते उवक्खडिते सिया, अह पच्छा भिक्खूपडियाए असणं वा ४ उवक्खडेज वा उवकरेज्ज वा, तं च भिक्खू अभिकंखेजा भोत्तए वा पातए वा वियट्टित्तए वा।
अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्टा ४ जं णो तहप्पगारे उवस्सए ठाणं वा ३ चेतेजा।
४२९. आयाणमेयं भिक्खुस्स गाहावतिणा सद्धिं संवसमाणस्स। इह खलु गाहावतिस्स अप्पणो सयट्ठाए विरूवरूवाइं दारुयाई भिण्णपुव्वाइं भवंति, अह पच्छा भिक्खुपडियाए विरूवरूवाइं दारुयाई भिंदेज वा किणेज वा पामिच्चेज वा दारुणा वा दारुपरिणाम कट्ट अगणिकायं उज्जालेज वा पज्जालेज वा, तत्थ भिक्खू अभिकंखेजा आतावेत्तए वा पयावेत्तए वा वियट्टित्तए वा।
अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा ४ जं तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा ३ चेतेजा।
४३०. से भिक्खू वा २ उच्चारपासवणेणं उब्बाहिजमाणे रातो वा वियाले वा गाहावतिकुलस्स दुवारबाहं अवंगुणेजा, तेणो य तस्संधिचारी अणुपविसेजा, तस्स भिक्खुस्स णो कप्पति एवं वदित्तए- अयं ३ तेणे पविसति वा णो वा पविसति, उवल्लियति वा णो वा उवल्लियति, आपतति वाणो वा आपतति, वदति वा णो वा वदत्ति, तेण हडं, अण्णेण
के लिहाज से भोजनादि जो पूर्व कर्म हैं, उन्हें गृहस्थ बाद में करता है। सूत्रार्थ पौरसी के बाद सूर्यास्त : होने पर। अन्तिम पौरसी में भोजन इत्यादि करने पर साधुओं के स्वाध्याय में विघ्न पड़ता है, यह सोचकर गृहस्थ भोजनादि कार्य पहले कर लेता है। भोजन बनाने का कार्य भी साधुओं के अनुरोध से इस प्रकार के विघ्न के कारण स्थगित कर देता है। साधु अपनी चर्या आगे-पीछे करता है या स्थगित कर देता है।
गृहस्थ भिक्षु के अनुरोध से कई नित्यकार्य करते हैं, नहीं भी करते। १. 'पुव्वोवदिट्ठा' के बाद '४' का अंक यहाँ "एस उवएसो' तक के पाठ का सूचक है। २. 'ठाणं वा' के बाद '३' का अंक 'सेजं वा निसीहियं वा' पाठ का सूचक है।
चूर्णिकार 'अतेणं तेणगमिति संकति' इस वाक्य की व्याख्या यों करते हैं - 'अयं उवचरए, उवचरओ णाम चारिओ, ताणि वा साहुं चेव भणंति-अयं तेणे, अयं उवचरए, अयं एत्थ अकासी चोरचारियं, आसी वा एत्थ। एत्थ सम्भावे कहिए चोरातो भयं, तुहिक्के पच्चंगिरा। अतेणं तेणगमिति संकति। सागारिए भवे दोसा।'
-साधु अगर चोरों के विषय में सच्ची बात कहता है, किन्तु चोरों का पता न लगने पर गृहस्थ उसी (साधु) को यों कहते हैं - यह चोर है, यह उपचरक- गुप्तचर है। इसी ने यहाँ चोरी (चारीभेद बताने का कार्य) की है, यही यहाँ था। ऐसी स्थिति में अगर वह साधु सच्ची बात कह देता है तो चोरों से भय है, यदि मौन रहता है तो उसके प्रति अप्रतीति होती है। जो साधु चोर नहीं है, उसके प्रति
चोर की शंका होती है। अतः गृहस्थ-संसक्त स्थान में यह दोष सम्भव है। ४. वदति के स्थान पर वयइ पाठान्तर मानकर चूर्णिकार ने अर्थ किया है-'व्रजति' -अर्थात् जाता है।
३.
पून