Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन
सत्तमो उद्देसओ सप्तम उद्देशक
मालाहृत दोष-युक्त आहार-ग्रहण निषेध
३६५. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुणं जाणेजा-असणं वा ४१ खंधंसि' वा थंभंसि वा मंचंसि वा मालंसि वा पासादसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि उवणिक्खित्ते सिया। तहप्पगारं मालोहडं असणं वा ४ अफासुयं णो पडिगाहेज्जा।
केवली बूया-आयाणमेयं । अस्संजए भिक्खुपडियाए पीढं वा फलगं वा णिस्सेणिं वा उदूहलं वा अवहट्ट उस्सविय दुरुहेजा। से तत्थ दुरुहमाणे पयलेज वा पवडेज वा। से तत्थ पयलमाणे मा पवडमाणे वा हत्थं वा पायं वा बाहु वा ऊरुं वा उदरं वा सीसं वा अण्णतरं वा कायंसि इंदियजायं लूसेज वा, पाणाणि वा ४५ अभिहणेज वा, वत्तेज ६ वा, लेसेज वा, संघसेज वा, संघट्टेज वा, परियावेज वा, किलामेज वा, [उद्दवेज वा?,] ठाणाओ ठाणं संकामेज वा, [ जीवियाओ ववरोवेज वा?] ।तं तहप्पगारं मालोहडं असणं वा ४ लाभे संते णो पडिगाहेज्जा।
१. यहाँ 'असणं वा' के बाद '४' का अंक शेष तीनों आहारों का सूचक है। २. 'खंधंसि वा' की व्याख्या चूर्णि में इस प्रकार की गयी है-खंधो पागारओ, अथवा खंधो,सो तज्जातो
अतज्जातो वा, अतज्जातो अडवीय गोउलादिसु उवनिक्खित्तं होज, अतज्जातो घरे चेव, पाहाणखंधो वा, तज्जातो गिरिणगरे, अतज्जातोऽन्यत्र । अर्थात् स्कन्ध प्राकारक का नाम है। अथवा स्कन्ध दो प्रकार का होता है-तज्जात और अतज्जात । अतज्जात वह है, जो जंगल में, गोकुल आदि में डाला जाता है। अतज्जात स्कन्ध घर में ही पाषाण का बना हुआ स्कन्ध होता है, तज्जात होता है गिरिनगर में-उसी पत्थर से जो
बनता है। ३. 'अवहट्ट' का अर्थ चूर्णिकार करते हैं-'अवहट्ट-अण्णतो गिण्हित्ता अण्णहि ठवेति।' अवहट्ट का
' अर्थ है- अन्य स्थान से लेकर अन्य स्थान में रख देता है। ४. 'दुरुहेज्जा' के स्थान पर 'दुरुहेज' तथा 'दुहेजा' पाठान्तर मिलते हैं। अर्थ समान है। ५. 'पाणाणि वा' के आगे '४' का चिन्ह 'भूयाणि वा, जीवाणि वा,सत्ताणि वा' का सूचक है। ६. इसके स्थान पर 'वित्तासिज', 'वित्तसेज' आदि पाठान्तर मिलते हैं। अर्थ होता है--विशेष रूप से त्रास
देगा। ७. यहाँ भी आवश्यकोक्त ऐर्यापथिकी सूत्र के पाठ के अनुसार क्रम माना है-'अभिहया, वत्तिया, लेसिया,
संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओठाणं, संकामिया, जीवियाओ ववरोविया।'