Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
केवली बूया-आयाणमेयं ।
अस्संजए भिक्खुपडियाए अगणिं उस्सिक्किय णिस्सिक्किय ओहरिय आहट्ट दलएज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा३ ४ जाव णो पडिगाहेजा। वायुकाय-हिंसाजनित निषेध
से भिक्खूवा २ जावसमाणे से जं पुण जाणेजा-असणं वा ४ अच्चुसिणं अस्संजए भिक्खु पडियाए सूवेण वा विहुवणेण वा तालियंटेण वा पत्तेण वा साहाए वा साहाभंगेण वा पेहुणेण वा पेहुणहत्थेण वा चेलेण वा चेलकण्णेण वा हत्थेण वा मुहेण वा फुमेज वा वीएज्जा वा। से पुव्वामेव आलोएजा-आउसो त्ति वा भगिणि त्ति वा मा एतं तुमं असणं वा ४ अच्चुसिणं सूवेण ५ वा जाव फुमाहि वा वीयाहि वा, अभिकंखसि मे दाउं एमेव दलयाहि । से सेवं वदंतस्स परो सूवेण वा जाव वीइत्ता आहट्ट दलएज्जा, तहप्पगारं असणं वा ४ अफासुयं जावणो पडिगाहेजा। वनस्पति-प्रतिष्ठित आहार ग्रहण-निषेध
सेभिक्खूवा २ जावसमाणे से जं पुण जाणेजा असणं वा ४ वणस्सतिकायपतिद्वितं। तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वणस्सतिकायपतिहितं अफासुयं लाभे संते णो पडिगाहेजा। एवं तसकाए वि।
३६८. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यदि यह जाने कि यह अशनादि चतुर्विध आहार- पृथ्वीकाय (सचित्त मिट्टी आदि) पर रखा हुआ है, तो इस प्रकार के . आहार को अप्रासुक और अनेषणीय समझकर साधु-साध्वी ग्रहण न करे।
वह भिक्षु या भिक्षुणी आदि ....... यह जाने कि -अशनादि आहार अप्काय (सचित्त जल आदि) पर रखा हुआ है, तो इस प्रकार के आहार को अप्रासुक, अनेषणीय जानकर ग्रहण न करे। १. इन दोनों पदों के स्थान पर 'उस्सिकिया णिस्सिक्किया'- 'उस्सिकिय णिस्सिकिय', 'उस्सिकिय
णिस्सिकिय', और 'उस्संकिय णिस्सिक्किय' पाठान्तर मिलते हैं। अर्थ प्रायः समान है। उस्सिकिय का अर्थ चूर्णि में इस प्रकार है- उस्सिकिय- यानी बुझा कर । अन्य टीका में ओस (उस्स) किय' पाठ
मान कर अर्थ किया है-प्रज्वाल्य- जलाकर । २. ओहरिय का अर्थ चूर्णिकार ने किया है-'उत्तारेतु'-उतारकर। ३. यहाँ 'पुचोवदिट्ठा' के आगे '४' का चिह्न सूत्र ३६७ के अनुसार- 'णो पडिगाहेजा' तक समग्र पाठ
समझें। ४. 'विहुवणेण' के स्थान पर 'विधुवणेण' पाठान्तर मानकर चूर्णिकार ने अर्थ किया है-विधुवणं
वीयणओ-व्यंजनक-पंखा।
सूवेण का अर्थ चूर्णिकार ने यों किया है-सूवं-सुप्पं-सूप (छाज)। ६. अफासुयं के आगे जाव शब्द पडिग्गाहेज्जा तक सूत्र ३२४ के अनुसार समग्र पाठ समझें। ७. 'जाव' के अन्तर्गत सूत्र ३२४ के अनुसार 'समाणे' तक का समग्र पाठ समझें।