Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : अष्टम उद्देशक : सूत्र ३८५-३८८
समटुं वइदूमितं वेत्तग्गगं वा कदलिऊसुंग वा अण्णतरं २ वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणयं जाव णो पडिगाहेजा।
___३८६. से भिक्खू वा २ जाव ३ समाणे से जं पुण जाणेज्जा लसुणं वा लसुणपत्तं वा लसुणणालं वा लसुणकंदं वा लसुणचोयगंवा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणतं जावणो पडिगाहेजा।
३८७. से भिक्खूवा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा अच्छियं ५ वा कुंभिपक्कं तेंदुगं ६ वा वेलुगं वा कासवणालियं वा, अण्णतरं वा आमं असत्थपरिणतं जाव णो पडिगाहेजा।
३८८. से भिक्खू वा २ जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा कणं वा कणकुंडगं वा कणपूयलिं वा " चाउलं वा चाउलपिटुं वा तिलं वा तिलपिटुं वा तिलपप्पडगं वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं आमं असत्थपरिणतं जाव लाभे संते णो पडिगाहेज्जा।
३७५. गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि यह जानें कि वहाँ कमलकन्द, पालाशकन्द , सरसों की बाल तथा अन्य इसी प्रकार का कच्चा कन्द है, जो शस्त्रपरिणत नहीं हुआ है, ऐसे कन्द आदि को अप्रासुक जान कर मिलने पर भी ग्रहण न करे। १. कदलिऊसगं के स्थान पर चूर्णिकार ने कंदलीउस्सगं पाठ माना है, जिनकी व्याख्या इस प्रकार है -
कंदलीउस्सुगं मझं कतलीए हत्थिदंतसंठितं। कंदलीउस्सुगं-कंदली के बीच में हाथी-दांत के आकार
का होता है। २. अण्णतरं वा तहप्पगारं की व्याख्या चूर्णिकार करते हैं-'कलातो, सिंबा, कला चणगो, उसिं सेंगा
तस्स चेव, एवं मुग्गमासाण वि, आमत्ता ण कप्पंति।' कला कहते हैं चने को। उसिं का अर्थ हैउसी की सींग यानी फली। इसी प्रकार मूंग, मोठ और उड़द की भी फली। सेंगा-फली (मराठी भाषा में
आज भी प्रयुक्त) होती है, कच्ची होने से साधु को लेना कल्पनीय नहीं है। ३. जाव से गाहावइकुलं से लेकर समाणे तक का समग्र पाठ सू० ३२४ के अनुसार है। ४. यहाँ जाव शब्द से अफासुयं से लेकर णो पडिगाहेज्जा तक का समग्र पाठ सूत्र ३२४ के अनुसार समझें। ५. अच्छियं के स्थान पर कहीं-कहीं अछिकं, कहीं अत्थियं पाठान्तर मिलता है। अर्थ दोनों का समान है।
चूर्णिकार 'अत्थिगं' पाठ मानकर कहते हैं-अत्थिंग कुम्भीए पच्चति-अधिक कुंभी में पकाया जाता है। ६. तुलना कीजिए
..... अत्थियं तिंदुयं बिल्लं उच्छृखंडं व सिंबलिं ...।' -दशवै०५/१/७४ कणपूयलिं की व्याख्या चूर्णिकार के शब्दों में - 'कणा तंदुलिकणियाओ, कुंडओ कुक्कुसा' तेहिं चेव पूवलिता आमिता। अर्थात् कण- चावल के दाने , कंड... कहते हैं उनके चोकर (छाणस) को, चोकर में चावल के भूसे सहित दाने होते हैं, जो सचित्त होने से उसकी पोली (रोटी) बनाते समय साथ
में रहते हैं, इसलिए ग्राह्य नहीं हैं। ८. चूर्णिकार मान्य पाठान्तर इस प्रकार है-तिलपप्पडं आमगं असत्थपरिणयं लाभे संते नो पडिग्गाहेजा।
तिलपपड़ी कच्ची (अपक्व) और अशस्त्र-परिणत होने से मिलने पर भी ग्रहण न करे।