Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
उक्कंबिए वा छत्ते वा लेत्ते वा घढे वा मढे वा समंटे वा संपधूविए वा। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव अणासेविए णो ठाणं वा ३ चेतेजा। - अह पुणेवं जाणेजा-पुरिसंतरकडे जाव' आसेविते, पडिलेहित्ता पमज्जिता ततो संजयामेव जाव चेतेजा।
४१६. से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेजा-अस्संजते भिक्खुपडियाए खुड्डियाओ दुवारियाओ महल्लियाओ कुज्जा जहा पिंडेसणाए जाव संथारंग संथारेजा बहिया वा णिण्णक्खु । तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे ५ जाव अणासेविए णो ठाणं वा ६३ चेतेजा।
अह पुणेवं जाणेज्जा-पुरिसंतरकडे जाव आसेविते, पडिलेहित्ता पमजित्ता ततो संजयामेव जाव चेतेजा।
४१७. से भिक्खुवा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेजा-अस्संजए भिक्खुपडियाए उदकपसूताणि कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा ठाणाओ ठाणं साहरति बहिया वा णिण्णक्ख। तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे जाव
खंभों पर बांसों को तिरछे रखना, छत्तो— घास, दर्भ आदि से ऊपर का भाग आच्छादित कर देना, लेत्तादीवार आदि पर गोबर आदि से लीपना, ये उत्तरगुण (उत्तर परिकर्म) हैं, जो मुलगुणों (मूल परिकर्म) को नष्ट कर देते हैं। घट्ठा-चूने, पत्थर आदि खुरदरे पदार्थ से घिस कर विषम स्थान को सम बनाना, मुट्ठा-. कोमल बनाना, समट्ठा-साफ कर देना, संपधूविता- धूप आदि सुगन्ध द्रव्यों से दुर्गन्ध को सुगन्धित करना। निशीथ चूर्णि उ०५ में, मलयगिरिसूरिविरचित वृहत्कल्पवृत्ति (पृ०१६९) में तथा कल्पसूत्र किरणावली व्याख्या (पृ० १७५) में भी इन शब्दों की व्याख्या क्रमशः इसी प्रकार मिलती है।-सं० यहाँ जाव शब्द से पुरिसंतरकडे से लेकर आसेवित तक का समग्र पाठ सूत्र ३३२ के अनुसार समझें। यहाँ जाव शब्द पिंडैषणाध्ययन में पठित महल्लियाओ कज्जा से लेकर संथारगं तक के पाठ का सूचक
है, सूत्र ३३८ के अनुसार। ४. 'णिण्णवख' के स्थान पर 'णिण्णक्ख' पाठ मानकर चूर्णि में व्याख्या की गयी है-णिण्णक्खणीणतातं
(णीणवाति) अंतो वा बाहिं वा' अर्थात्- अन्दर ले जाता है या बाहर निकालता है। यहाँ जाव शब्द से 'अपुरिसंतरकडे' से लेकर अणासेविए तक का समग्र पाठ सू० ३३१ के अनुसार समझें।
यहाँ ठाणं वा के बाद '३' का चिह्न सेज वा णिसीहियं वा पाठ का सूचक है। ७. यहाँ जाव शब्द से संजयामेव से लेकर चेतेज्जा तक का पाठ सूत्र ४१२ के अनुसार समझें।
इस पंक्ति की व्याख्या चूर्णिकार के शब्दों में-उदए पसूयाणि कंदाणि वा. , एवं मूल-बीतहरियाणि उदगण्यसूयाणि वा इतराणि वा संजयट्ठाए णीणेजा अर्थात् पानी में पैदा हुए कंद." एवं मूल, बीज, हरियाली, जल में पैदा हुए अन्य पदार्थों को साधु के निमित्त से बाहर निकाले। .