Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
-दोषरहित एषणीय, वेसियं- केवल रजोहरणादि वेष के कारण प्राप्त, उत्पादनादि दोषरहित, पिंडवातं- आहार।
संखडि में जाने से गौरव-हानि-संखडि में जाने से साधु की कितनी गौरवहानि होती है, इसका निरूपण सूत्र ३४२ में स्पष्टतया किया गया है। ऐसी संखडि के दो विशेषण प्रस्तुत किए गए हैं- "आकीर्णा और अवमा।" आकीर्णा वह संखडि होती है जिसमें भिखारियों की अत्यधिक भीड़ हो और 'अवमा' वह संखडि होती है, जिसमें आहार थोड़ा बनाया गया है, किन्तु याचक अधिक आ गए हों। इन दोनों प्रकार की संखडियों के कारण संखडि से आहार लेने में बाह्य
और आन्तरिक – दोनों प्रकार संघर्ष होता है। बाह्य संघर्ष तो अंगों की परस्पर टक्कर के कारण होता है परस्पर जमकर मुठभेड़ होती है, एक दूसरे पर प्रहार आदि भी हो सकते हैं और आन्तरिक संघर्ष होता है- परस्पर विद्वेष, घृणा, अश्रद्धा एवं सम्मानहानि। इससे साधुत्व की गौरवहानि के अतिरिक्त लोकश्रद्धा भी समाप्त हो जाती है। आहार ग्रहण के समय तू-तू-मैं-मैं होती है। हर एक भिक्षाचर एक दूसरे के बीच में ही झपटकर पहले स्वयं आहार ले लेना चाहता है। संखडि वाला गृहपति देखता है कि मेरे इस प्रसंग को लेकर ही इतने सारे लोग आ गए हैं तो इन सबको मुझे जैसे-तैसे आहार देना ही पड़ेगा। अत: वह उन सबको देने के लिए पुनः आहार बनवाता है, इस प्रकार से निष्पन्न आहार आधाकर्मादि-दोष से दूषित होता है, वह अनैषणीय आहार उक्त निर्ग्रन्थ भिक्षु को भी लेना पड़ता है, खाना भी पड़ता है। २ ।
अक्कन्तपुव्वे आदि शब्दों की व्याख्या वृत्तिकार के अनुसार इस प्रकार है- अक्कन्तपुब्वेपरस्पर आक्रान्त होना - पैर से पैर टकराना, दब जाना या ठोकर लगना, संचालियपुव्वे- एक दूसरे पर हाथ चलाना, धक्का देना, आवडियपुव्वे- पात्र से पात्र टकराना, रगड़ खाना, संघट्टियपुव्वे - सिर से सिर का स्पर्श होकर टकराना, संखोभितपुव्वे- शरीर से शरीर का संघर्षण होना, अभिहतपुव्वे- परस्पर प्रहार करना, परिघासितपुव्वे- परस्पर धूल उछालना, ओसित्तपुव्वे- परस्पर सचित्त पानी छींटना। परिभुत्तपुव्वे- पहले स्वयं आहार का उपभोग कर लेना, पडिगाहितपुव्वे- पहले स्वयं आहार ग्रहण कर लेना। अट्ठीण- हड्डियों का, मुट्ठीणमुक्कों का, लेलुणा– ढेले से या पत्थर से, कवालेण– खप्पर से, ठीकरे से (विग्रह करना)। शंका-ग्रस्त-आहार-निषेध
३४३. से भिक्खु वा २ जाव पविढे समाणे से ज्जं पुण जाणेज्जा असणं वा ४ 'एसणिजे सिया, अणेसणिजे सिया'।वितिगिंछसमावण्णेण अप्पाणेण असमाहडाए लेस्साए तहप्पगारं असणं वा ४ लाभे संते णो पडिगाहेजा।
२. टीका पत्र २३१
१. पत्र ३३१ के आधार पर ३. टीका पत्र ३३१