Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
'पुरा असिणादि वा' इत्यादि पदों के अर्थ—असिणादि-पहले दूसरे श्रमणादि उस अग्रपिण्ड का सेवन कर चुके हैं, अवहारादि-कुछ पहले व्यवस्था या अव्यवस्थापूर्वक जैसे-तैसे उसे ले चुके। खदं खदं-जल्दी-जल्दी। विषम मार्गादि से भिक्षाचर्यार्थ गमन-निषेध
३५३. से भिक्खू वा २२ जावं' समाणे अंतरा से वप्पाणि वा फलिहाणि वा पागाराणि वा तोरणाणि वा अग्गलाणि वा अग्गलपासगाणि वा, सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेजा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा।
केवली बूया-आयाणमेयं। से तत्थ परक्कममाणे पयलेज वा पवडेज वा, से तत्थ पयलमाणे वा पवडमाणे वा तत्थ से काए उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणएण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूएण वा सुक्केण वा सोणिएण वा उवलित्ते सिया। तहप्पगारं कायं णो अणंतरहियाए ५ पुढवीए, णो ससणिद्धाए, पुढवीए, णो ससरक्खाए पुढवीए, णो चित्तमंताए सिलाए, णो चित्तमंताए लेलूए, कोलावासंसि वा दारुए जीवपतिट्ठिते सअंडे १. टीका पत्र ३३६। २. जहाँ-जहाँ २' का चिन्ह है वहाँ 'भिक्खूणी वा' पाठ समझना। ३. यहाँ 'जाव' शब्द सूत्र ३२४ के अनुसार समग्र पाठ का सूचक है। ४. तुलना करिए–दशवैकालिक (५ । २।७ एवं ९ गाथा) ५. 'अणंतरहियाए' आदि पदों की व्याख्या चूर्णिकार ने इस प्रकार की है—'अणंतरहिता नाम, तिरो अंतर्धाने,
न अंतर्हिता, सचेतणा, इत्यर्थः सचेतणा अहवा अणंतेहिं रहिता इत्यर्थः । ससणिद्धा घडओ(5)स्थ पाणियभरितो पल्हत्थतो, वासं वा पडियमेत्तयं । ससरक्खा सचिता मट्टिता तहिं पडति या सगडमादिणा णिजमाणी कुंभकारादिणा लवणं वा। चित्तमंता सिला-सिला एव सचिता। लेलू मट्टिताउंडओ सचित्तो चेव। कोलो नाम घुणो तस्स आवासं कटुं, अन्ने वा दारुए जीवपतिठ्ठते हरितादीणं उवरिं उद्देहिगणे वा सचित्ते वा सअंडे सपाणे पुव्वभणिता। आमजति एक्कसिं। पम्मजति पुणो पुणो। 'अणंतरहियाए' आदि पदों की चूर्णिकार-कृत व्याख्या का अर्थ इस प्रकार है-अर्थात् अणंतरहिता (अनन्तर्हिता) का अर्थ होता है- जिसकी चेतना अन्तर्हित न हो-तिरोहित न हो, अर्थात् जो सचेतन हो अथवा अनन्तों (अनन्त निगोद भाव) से रहित हो, वह अनन्त-रहित है। ससणिद्धा-स्निग्ध पृथ्वी, जैसे पानी का घड़ा पलट जाने से (मिट्टी पर) वह स्निग्ध हो जाती है, या मिट्टी पर पानी का बर्तन सिर्फ पड़ा हो वह भी स्निग्ध पृथ्वी है। ससरक्खा-सचित्त मिट्टी, जहाँ गिरती है, जिसे कुम्भकार आदि गाड़ी आदि से ढोकर ले जाते हैं, अथवा सचित्त नमक। चित्तमंता सिला-जो सिला ही सचित्त हो, लेलू-मिट्टी का ढेला, जो सचित्त होता है। कोल–कहते हैं घुन को, उसका आवास काष्ठ होता है। अन्य जो लकड़ी, जीवप्रतिष्ठित हो, हरित पर या लकड़ी पर दीमक लग जाने से या सचित्त हो।'सअंडे सपाणे' का अर्थ पहले कहा जा चुका है। आमजति–एक बार, पमजति-बार-बार प्रमार्जन करना है।