Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
से भिक्खू वा ' जाव समाणे से जं पुण जाणेज्जा, समणं वा माहणं वा गामपिंडोलगं वा अतिहिं वा पुव्वपविटुं पेहाए णो ते उवातिक्कम्म पविसेज वा ओभासेज वा। सेत्तमायाए एगंतभवक्कमेजा, २२[त्ता] अणावायमसंलोए चिट्ठेजा।
अह पुणेवं जाणेजा पडिसेहिए ३ व दिण्णे वा, तओ तम्मि णिवट्टिते संजयामेव पविसेज वा ओभासेज वा।
३५७. वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करते समय यदि यह जाने कि बहुत-से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, (ग्राम-पिण्डोलक), दरिद्र, अतिथि और याचक आदि उस गृहस्थ के यहाँ पहले से ही प्रवेश किए हुए हैं, तो उन्हें देखकर उनके (दृष्टि पथ में आए, इस तरह से) सामने या जिस द्वार से वे निकलते हैं, उस द्वार पर खड़ा न हो।
केवली भगवान् कहते हैं - यह कर्मों का उपादान है - कारण है।
पहली ही दृष्टि में गृहस्थ उस मुनि को वहाँ (द्वार पर) खड़ा देखकर उसके लिए आरम्भसमारम्भ करके अशनादि चतुर्विध आहार बनाकर, उसे लाकर देगा। अतः भिक्षुओं के लिए पहले से ही निर्दिष्ट यह प्रतिज्ञा है, यह हेतु है, यह उपदेश है कि वह भिक्षु उस गृहस्थ और शाक्यादि भिक्षाचरों की दृष्टि में आए, इस तरह सामने और उनके निर्गमन द्वार पर खड़ा न हो।
वह (उन श्रमणादि को भिक्षार्थ उपस्थित) जान कर एकान्त स्थान में चला जाए, वहाँ जाकर कोई आता-जाता न हो और देखता न हो, इस प्रकार से खड़ा रहे।
उस भिक्षु को उस अनापात और असंलोक स्थान में खड़ा देखकर वह गृहस्थ अशनादि आहार - लाकर दे, साथ ही वह यों कहे -"आयुष्मन् श्रमण! यह अशनादि चतुर्विध आहार मैं आप सब (निर्ग्रन्थ - शाक्यादि श्रमण आदि उपस्थित) जनों के लिए दे रहा हूँ। आप अपनी रुचि के अनुसार इस आहार का उपभोग करें और परस्पर बाँट लें।"
इस पर यदि वह साधु उस आहार को चुपचाप लेकर यह विचार करता है कि "यह आहार (गृहस्थ ने) मुझे दिया है, इसलिए मेरे ही लिए है," तो वह माया-स्थान का सेवन करता है। अतः उसे ऐसा नहीं करना चाहिए।
वह साधु उस आहार को लेकर वहाँ (उन शाक्यादि श्रमण आदि के पास) जाए और वहाँ जाकर सर्वप्रथम उन्हें वह आहार दिखाए, और यह कहे - "हे आयुष्मन, श्रमणादि! यह १. 'भिक्खु वा' के बाद '२' का अंक 'भिक्खुणी वा' का सूचक है। २. 'अवक्कमेजा' के बाद '२' का अंक 'अवक्कमित्ता' पद का सूचक है। ३. तुलना करिए -
पडिसेहिए व दिने वा, तओ तम्मि नियत्तिए। अवसंकमेज भत्तट्ठा, पाणट्ठाए व संजए ॥
-दशवै०५/२/१३ ४. किसी-किसी प्रति में पाठान्तर है-'नियत्तिए तओ संजया, अर्थ एक समान है।