Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
६०
आचारांग सूत्र -द्वितीय श्रुतस्कन्ध
पड़े हैं, जैसे कि- कुक्कुट जाति के जीव, शूकर जाति के जीव, अथवा अग्र-पिण्ड पर कौए झुण्ड के झुण्ड टूट पड़े हैं; इन जीवों को मार्ग में आगे देखकर संयत साधु या साध्वी अन्य मार्ग के रहते, सीधे उनके सम्मुख होकर न जाएँ।
विवेचन - दूसरे प्राणियों के आहार में विघ्न न डालें - इस सूत्र में षट्कायप्रतिपालक साधु-साध्वियों के लिए भिक्षार्थ जाते समय मार्ग में अपना आहार करने में जुटे हुए पशु-पक्षियों को देखकर उस मार्ग से न जाकर अन्य मार्ग से जाने का निर्देश किया गया है। इसका कारण यह है, वे बेचारे प्राणी भय के मारे अपना आहार छोड़कर उड़ जायेंगे या इधर-उधर भागने लगेंगे इससे (१) एक तो उन प्राणियों के आहार में अन्तराय पड़ेगा, (२) दूसरे वे साधु-साध्वी के निमित्त से भयभीत होंगे, (३) तीसरे वे हड़बड़ाकर उड़ेंगे या भांगेंगे, इसमें वायुकायिक आदि अन्य जीवों की विराधना सम्भव है और (४) चौथे, उनके अन्यत्र उड़ने या भागने पर कोई क्रूर व्यक्ति उन्हें पकड़कर बन्द भी कर सकता है, मार भी सकता है।
पक्षीजाति और पशुजाति के प्रतीक - प्रस्तुत सूत्र में कुक्कुट जातीय द्विपद और शूकर जातीय चतष्पद प्राणी के ग्रहण से समस्त पक्षीजातीय द्विपद और पशजातीय चतष्पद प्राणियों का ग्रहण कर लेना चाहिए। जैसे कुक्कुट पक्षी की तरह चिड़िया, कबूतर, तीतर, वटेर आदि अन्य पक्षीगण तथा सुअर की तरह कुत्ता, बिल्ली, गाय, भैंस, गधा, घोड़ा आदि पशुगण । अग्रपिण्ड भक्षण के निमित्त जुटे हुए कौओं के दल को अन्तराय डालने का निषेध तो अलग से किया है। १
'रसेसिणो' आदि पदों का अर्थ- रसेसिणो- रस - स्वाद का अन्वेषण करने वाले, घासेसजाए- अपने ग्रास (दाना-चुग्गा या आहार) की तलाश में, संणिवतिए-सन्निपतित
- उड़ कर कर आये हुए, या अच्छी तरह जुटे हुए, संलग्न। २ भिक्षार्थ प्रविष्ट का स्थान व अंगोपांग संचालन-विवेक
३६०. से भिक्खू वा २ जाव समाणे णो गाहावतिकुलस्स दुवारसाहं २ अवलंबिय २ १. आचारांगवृत्ति पत्रांक ३४० २. वही, पत्रांक ३४० ३. 'दुवारसाहं' के स्थान पर चूर्णिकार आदि ने 'दुवारबांह' पाठ ठीक माना है। सूत्र ३५६ में भी यही पाठ है।
'अवलंबण' आदि शब्दों की व्याख्या चूर्णिकार ने इस प्रकार की है - अवलंबणं - अवत्थंभणं कारण वा हत्थेण वा दव्वलकति उहेहि पक्खहिते। फलहितं -फलिहो चेव, दारं -उतरतरो, कवार्ड-तोरणेसु एते चेव दोसा। दगछडुणगं-जत्थ पाणियं छडिजति।चंदणिउदर्ग-जहिं उचिट्ठभायणादी धुव्वंति। अर्थात् अवलम्बन कहते हैं - अवस्तम्भन - सहारा लेना, शरीर से या हाथ से दुर्बल और लड़खड़ाती देह के लिए। फलिह-बाँस आदि की टाटी। द्वार-द्वार, कवाडं-कपाट, तोरणेसं-तोरणों में ये दोष हैं। दगछडणगं-जहाँ पानी फेंका जाता है। चंदणिउदगं-जहाँ झूठे बर्तन आदि धोये जाते हैं।