Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
३३९. एयं खलु तस्स भिक्खुस्स भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वद्वेहिं समिते सहिते सदा जाए त्ति बेमि ।
३०
॥ बीओ उद्देसओ समत्तो ॥
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३३९. निष्कर्ष और निर्देश- • यह (संखडिविवर्जन रूप पिण्डैषणा विवेक) उस भिक्षु या भिक्षुणी (के भिक्षुभाव) की समग्रता - सम्पूर्णता है कि वह समस्त पदार्थों में संयत या समित ज्ञानादि सहित होकर सदा प्रयत्नशील रहे । १
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
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॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥
५.
तइओ उद्देसओ तृतीय उद्देशक
संखडि-गमन में विविध दोष
• ३४०. से एगतिओ अण्णतरं संखडिं असित्ता पिबित्ता छड्डेज्ज २ वा, वमेज्ज वा, ' वा से णो सम्मं परिणमेज्जा, अण्णतरे वा दुक्खे रोगातंके समुप्पज्जेज्जा ।
भुत्ते
केवली बूया— आयाणमेतं ।
इह खलु भिक्खू गाहावतीहिं वा गाहावतीणीहिं वा परिवायएहिं ३ वा परिवाइयाहिं वा एगज्झं सद्धिं सोंडं पाउं भो वतिमिस्सं हुरत्था वा उवस्सयं पडिलेहमाणे णो लभेज्जा तमेव उवस्सयं सम्मिस्सीभावमावज्जेज्जा, अण्णमणे ४ वा से मत्ते विप्परियासियभूते ' इत्थवि वा किलीबे वा, तं भिक्खुं उवसंकमित्तु बूया आउसंतो समणा ! अहे आरोमंसि वा अहे
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१.
इसका विवेचन प्रथम उद्देशकवत् समझ लेना चाहिए।
२. 'छड्डेज्ज वा वमेज्ज वा' का अर्थ चूर्णिकार ने किया है— छड्डी वोसिरावणिता, वमणं वमणमेव ।
३. इसकी व्याख्या चूर्णिकार के शब्दों में- परिवाया कावालियमादी, परिवातियाओ तेसिं चेव भोतियो वासु,
गिम्हगमादीसु संखडीसु पिबंति, अगारीओ वि माहिस्सरमालवग-उज्जेणीसु एगज्झं एगवत्ता एगचित्ता वा सद्धं मिलित्ता वा सोंड विगडं चेव पिबंति, पादुः प्रकाशने प्रकाशं पिबति । अर्थात् — परिव्राजक कापालिक आदि और परिव्राजिकाएँ उन्हीं की होती हैं। वे सब वर्षा और ग्रीष्म आदि ऋतुओं में होने वाले संखडियों में मद्य पीती हैं। पादुः प्रकाशन अर्थ में है। यानि प्रकट में पीते हैं। गृहस्थ पत्नियाँ भी माहेश्वर, मालवा, उज्जयिनी आदि में एकचित्त, एक वाक्या होकर साथ में मिलकर मदिरा (विकट ) पीती हैं।
४. अण्णमणे की व्याख्या चूर्णिकार करते हैं- अण्णमणो णाम ण संजतमणो, अन्यमना का अर्थ है जो
संयतमना न हो।
'विप्परियासियभूते' के बदले चूर्णिकार 'विप्परियासभूतो' पाठ मानकर व्याख्या करते हैंणाम अचेतो' - विप्परियासभूतो का मतलब है।
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अचेत - मूर्च्छित, बेभान ।
- 'विप्परियासभूतो