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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व रहती; अतः हमेशा 'धर्मोपग्रह दान' करना चाहिए। जो मनुष्य अशन पानादि धर्मोपग्रह दान सुपात्र को देता है,वह तीर्थको अविच्छेद करता और परमपद पाता है।
शीलवत। सावद्य योगों का जो प्रत्याख्यान है, उसे "शील” कहते है। वह देश-विरति तथा सर्व विरति ऐसे दो प्रकार का है। पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत- इस तरह सब मिलाकर देश-विरति के बारह प्रकार होते हैं। स्थूल, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह—ये पाँच प्रकार अणुव्रत के हैं । दिगविरति, भोगोपभोग विरति, अनर्थ दण्ड विरति-ये तीन गुणव्रत हैं और सामायिक, देशावकाशिक, पौषध तथा अतिथि संविभाग—ये चार शिक्षाव्रत हैं। इस प्रकार का यह देश-विरति. गुण शुश्रूषा आदि गुणवाले,—यति-धर्म के अनुरागी,-धर्म-पथ्यभोजन के अर्थी, शम-संवेग, निर्वेद, करुणा और आस्तिक्य,इन पाँच लक्षण-युक्त, सम्यक्त्व को पाये हुए, मिथ्यात्व रहित और सानुबन्ध क्रोधके उदय से रहित गृहस्थी महात्माओं को, चारित्र मोहनी का नाश होने से, प्राप्त होता है। त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा के वर्जने को सर्वविरति कहते हैं । यह सिद्धिरूपी महल के ऊपर चढ़ने के लिए नसैनी-स्वरूप है। यह सर्वविरति गुण- प्रकृति से अल्प कषायवाले, संसार-सुख से विरक्त और विनय आदि गुण वाले महात्मा मुनियों को प्राप्त होता है।