Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐१-६-3-१(१९८)॥ 43 श्रुतस्कंध - 1 अध्ययन - 6 उद्देशक - 3 उपकरण-शरीरविधूननम् // द्वितीय उद्देशक कहा, अंब तृतीय उद्देशक का प्रारंभ करतें हैं... यहां परस्पर इस प्रकार संबंध है कि- दुसरे उद्देशक में कर्मधूनन की बात कही, किंतु वह उपकरण एवं शरीर के विधूनन के सिवा हो हि नहि शकता, अत: उन उपकरणादि के विधूनन के लिये यहां तीसरे उद्देशक में कहा जाएगा... इस प्रकार के संबंध से आये हुए इस तीसरे उदेशक का यह प्रथम सूत्र हैं... I सूत्र // 1 // // 198 // 1-6-3-1 एयं खु मुणी आयाणं सदा सुयक्खायधम्मे विहूयकप्पे निज्झोसइत्ता, जे अचेले परिवुसिए तस्स णं भिक्खुस्स नो एवं भवइ- परिजुण्णे मे वत्थे, वत्थं जाइस्सामि, सुत्तं जाइस्सामि, सूई जाइस्सामि, संधिस्सामि सीविस्सामि उक्कसिस्सामि वुक्कसिस्सामि परिहिस्सामि पाउणिम्सामि, अदुवा तत्थ परिक्कमंतं भुजो अचेलं तणफासा फुसंति, सीयफासा फुसंति, तेउफासा फुसंति, दंसमसगफासा फुसंति एगयरे अण्णयरे विरूवरूवे फासे अहियासेइ, अचेले लाघवं अगममाणे, तवे से अभिसमण्णागए भवइ, जहेयं भगवया पवेइयं तमेव अभिसमिच्चा सव्वओ सव्वत्ताए संमत्तमेव समभिजाणिज्जा, एवं तेसिं महावीराणं चिररायं पुव्वाइं वासाणि रीयमाणाणं दवियाणं पास अहियासिय।। 198 // // संस्कृत-छाया : - एतत् खु मुनिः आदानं, सदा स्वाख्यातधर्मा विद्यूतकल्पः झोषयित्वा, यः अचेलः पर्युषित: तस्य भिक्षोः न एवं भवति - परिजीर्णं मम वस्त्रं, वस्त्रं याचिष्ये, सूत्रं याचिष्ये, सूचिं याचिष्ये, सन्धास्यामि सेविष्यामि उत्कर्षयिष्यामि व्युत्कर्षयिष्यामि परिधास्यामि प्रावरिष्यामि, अथवा तत्र पराक्रामन्तं (पराक्रममाणं) भूयः अचेलं तृणस्पर्शाः स्पृशन्ति, शीतस्पर्शाः स्पृशन्ति, तेजःस्पर्शाः स्पृशन्ति दंशमशकस्पर्शाः स्पृशन्ति एकतरान् अन्यतरान् विरूपरूपान् स्पर्शान् अधिसहते, अचेलः लाघवं आगमयन्, तपः तस्य अभिसमन्वागतं भवति, यथा इदं भगवता प्रवेदितं तदेव अभिसमेत्य सर्वत्र सर्वात्मना सम्यक्त्वमेव समभिजानीयात्, एवं तेषां महावीराणां चिररात्रं पूर्वाणि वर्षाणि . रीयमाणानां द्रव्याणां पश्य अधिसोढव्यम् // 198 //