Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 248 1 - 9 - 1 - 12/13 (276-277) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन एयाइं सन्ति पडिलेहे, चित्तमंताई से अभिन्नाय परिवज्जिय विहरित्था, इय संखाए से महावीरे // 277 // संस्कृत-छाया : पृथिवीं च अप्कायं च, तेजस्कायं च, वायुकायं च / पनकानि बीजहरितानि, त्रसकायं च सर्वशः ज्ञात्वा // 276 // एतानि सन्ति प्रत्युपेक्ष्य, चित्तमंतानि सः अभिज्ञाय / परिवर्त्य विहृतवान्, इति संख्याय स: महावीरः // 277 // III सूत्रार्थ : भगवान महावीर पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय पनक-निगोद, बीज, हरी वनस्पति एवं त्रस काय के जीवों को सर्व प्रकार से जानकर इन सभी जीवों की सदा रक्षा करते हुए विचरते थे। भगवान महावीर पृथ्वीआदि के जीवों को सचेतन जानकर और उनके स्वरूप को भली-भांति अधिगत करके उनके आरम्भ-समारम्भ से सर्वथा निवृत्त होकर विचरते थे। IV टीका-अनुवाद : श्रमण भगवान् श्री महावीरस्वामीजी सचित्त पृथ्वीकायादि जीवों के आरंभ (विराधना) का त्याग करते हुए ग्रामानुग्राम विचरतें हैं... ___पृथ्वीकाय जीवों के दो भेद हैं... 1. सूक्ष्म पृथ्वीकाय एवं 2. बादर पृथ्वीकाय... उन में सूक्ष्म पृथ्वीकाय जीव इस विश्व में सर्वत्र रहे हुए हैं... और बादर पृथ्वीकाय जीवों के दो भेद है... 1. श्लक्ष्ण (मृदु) बादर पृथ्वीकाय, एवं 2. कठिन बादर पृथ्वीकाय... उन में श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकाय के जीव शुक्लादि पांच वर्णवाले होतें हैं, तथा कठिन बादर पृथ्वीकाय के जीव पृथ्वी, शर्करा, वालुका इत्यादि छत्तीस (36) भेदवाले होते हैं.. इन छत्तीस (36) भेदों का स्वरूप शस्त्रपरिज्ञा नाम के प्रथम अध्ययन में कहे गये हैं... अप्काय जीवों के भी दो भेद हैं... 1. सूक्ष्म अप्काय एवं 2. बादर अप्काय... उनमें सूक्ष्म अप्काय जीव शुक्लादि पांच वर्णवाले होते हैं, और बादर अप्काय के जीव शुद्धजल आदि भेद से पांच प्रकार के होते हैं... अग्निकाय जीवों के भी दो भेद हैं... 1. सूक्ष्म अग्निकाय एवं 2. बादर अग्निकाय... उन में सूक्ष्म अग्निकाय जीवों के शुक्लादि वर्ण भेद से पांच प्रकार के हैं, और बादर अग्निकाय