Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 270 // 1-9 - 2 -3 (290) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन जहां भगवान ठहरे थे, ऐसे और स्थानों को बताते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 3 // // 290 // 1-9-2-3 आगन्तारे आरामागारे तह य नगरे व एगया वासो। सुसाणे सुण्णागारे वा रुक्खमूले व एगया वासो // 290 // II संस्कृत-छाया : आगन्तारे आरामागारे तथा च नगरे वा एकदा वासः। श्मशाने शून्यागारे वा वृक्षमूले वा एकदा वासः // 290 // III सूत्रार्थ : जहां पर नगर और ग्राम से बाहिर प्रसंगवशात् लोग आकर ठहरते हों ऐसे आस्थानगृह में उद्यानगृह में तथा कभी कभी नगर में, श्मशान में, शून्यगृह में और वृक्ष के मूल में भी भगवान महावीर ने निवास किया / IV टीका-अनुवाद : अथवा तो आगंतुक मनुष्यों को ठहरने के लिये गांव या नगर के बाहार बनी हुइ धर्मशाला हो या बगीचे (उद्यान) में बने हुए घर (मकान) हो, कहिं भी महावीरस्वामीजी वसति करतें थें... कभी नगर में वसती करतें हैं, कभी श्मशानभूमि में, कभी शून्यगृह में, और कभी वृक्ष के नीचे श्रमण भगवान् महावीरस्वामीजी वसति करते थे... अर्थात् वहां अनुज्ञा लेकर कायोत्सर्ग ध्यान में लीन होते थे... V सूत्रसार : __ प्रस्तुत गाथा में भी भगवान महावीर के ठहरने के स्थानों का वर्णन किया गया है। जहां श्रमजीवी लोग विश्राम करते हों, या बीमार व्यक्ति स्वच्छ वायु का सेवन करने के लिए कुछ समय के लिए आकर रहते हों, ऐसे स्थानों को 'आगन्तार' कहते हैं। ये स्थान प्रायः शहरों गांवो के बाहर होते हैं। क्योंकि- शहरों के बाहर ही शुद्ध वायु उपलब्ध हो सकती है। इसके अतिरिक्त शहर के बाहर जो बाग-बगीचे होते हैं, जहां लोगों को एवं पशु-पक्षियों को विश्राम-आराम मिलता है, उन्हें आराम कहते हैं और उनमें बने हुए मकानों को आरामागार कहते हैं। इसके अतिरिक्त श्मशान, शून्य मकान एवं और कुछ नहीं तो वृक्ष की छाया तो