Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-9 - 3 - 3 (308) 289 %3 V - सूत्रसार : यह हम पहले देख चुके हैं कि- भगवान महावीर के कर्म इस काल चक्र में हुए शेष सभी तीर्थंकरों से अधिक था। अतः उन कठोर कर्मो को तोडने के लिए भगवान ने अनार्य देश में भी विहार किया। एक दिन ग्वाले ने भगवान पर चाबुक का प्रहार किया था। उस समय इंद्र ने आकर भगवान से प्रार्थना की थी कि- प्रभो ! साढ़े बारह वर्ष तक आपको देव-मनुष्यों द्वारा अनेक कष्ट मिलने वाले हैं, अत: आपकी आज्ञा हो तो मैं आपकी सेवा में रहूं। उस समय भगवान ने कहा- हे इन्द्र ! जितने भी तीर्थंकर हुए हैं, से सभी अपने कर्मों को तोडने के लिए देव या देवेन्द्र या किसी अन्य व्यक्ति का सहारा नहीं लेते हैं। वे स्वयं अपनी शक्ति से अपने कर्मों का नाश करते हैं। अनार्य उस देश में भगवान के विचरण का वर्णन करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... / सूत्र // 3 // // 306 // 1-9-3-3 लाढ़ेहिं तस्सुवस्सग्गा बहवे जाणवया लूसिंसु। अह लूहदेसिएं भत्ते कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु निवइंसु // 306 // II संस्कृत-छाया : लाढेषु तस्योपसर्गा: बहवः जानपदा: लूषितवन्तः। अथ रुक्षदेश्यं भक्तं, कुर्कुरा: तत्र जिहिंसुः निपेतुः // 306 // III. सूत्रार्थ : लाढ़ देश में श्री भगवान को बहुत से ऊपसर्ग हुए, बहुत से लोगों ने उन्हें मारापीटा एवं दान्तों तथा नखों से उनके शरीर को क्षत-विक्षत किया। उस देश में भगवान ने रूक्ष अन्न-पानी का सेवन किया। वहां पर कुत्तों ने भगवान को काटा। कई कुत्ते क्रोध में आकर भगवान को काटने के लिए दौड़ते थे। IV टीका-अनुवाद : लाढ यह जनपद याने देश विशेष है... वज्रभूमी एवं शुभ्रभूमी स्वरूप दोनों प्रकार के लाढ देश में विहार करने के वख्त प्रभुजी को प्रायः आक्रोश ताडन तर्जन एवं श्वभक्षणादि अनेक प्रकार के प्रतिकूल उपसर्ग हुए थे... क्योंकि- अनार्य ऐसे लाढ देश के निवासी अनार्य लोग, प्रभुजी को दंतभक्षण (दांतों