Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text ________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 337 268 किं पुण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिएहिं। होइ न उज्जमियव्वं सपच्चवायंमि माणुस्से ? // 269 चरिया 1 सिज्जा 2 य परीसहा 3 य आयंकियाए चिगिच्छा 4 य। तवचरणेणाऽहिगारो चउसुद्देसेसु नायव्वो। 270 नामंठवणुवहाणं दव्वे भावे य होइ नायव्वं / एमेव य सुत्तस्सवि निक्खेवो चउव्विहो होइ।। 271 . दव्वुवहाणं सयणे भावुवहाणं तवो चरित्तस्स। तम्हा उ नाणदंसणतवचरणेहिं इहाहिगयं / 272 जह खलु मइलं वत्थं सुज्झइ उदगाइएहिं दव्वेहिं। एवं भावुवंहाणेण सुज्झइ से कम्ममट्ठविहं / / 273 ओधूणण धूणण नासण विणासणं झवण खवण सोहिकरं। छेयण भेयण फेडण डहणं धुवणं च कम्माणं / / .274 एवं तु समणुचिन्नं वीरवरेणं महानुभावेणं। जं अणुचरित्तु धीरा सिवमचलं जन्ति निव्वाणं / / 275 'सव्वेसिपि नयाणं बहुविहं वत्तवयं निसामेत्ता। तं सव्वणयविसुद्धं जं चरणगुणट्ठिओ साहु॥ त्ति' // इति प्रथमश्रुतस्कंधस्य नियुक्तिः //
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