Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1- 9 - 3 - 5 (308) 29 इति / / 307 // III सूत्रार्थ : उस प्रदेश में ऐसे व्यक्ति बहुत ही कम थे, जो भगवान को काटते हुए कुत्तों से छुडाते थे। प्रायः वहां के लोग काटते हुए कुत्तों को छू-छू करके काटने के लिए और अधिक प्रोत्साहित करते थे। वे ऐसा प्रयत्न करते थे कि- ये कुत्ते श्रमण भगवान महावीर को काटें। IV टीका-अनुवाद : उस लाढ (अनार्य) देश में एक भी मनुष्य ऐसा नहि था, अथवा बहोत हि अल्प मनुष्य थे, कि- जो प्रभुजी को काटते हुए कुत्तों का निवारण करे... किंतु वहां के अनार्य मनुष्य प्रभुजी को दंडों के प्रहार से मारकर, उन कुत्तों को सीत्कार आदि चेष्टा कर के प्रभुजी की उपर दौडातें थे... वें अनार्य लोग ऐसा चाहते थे कि- यह कुत्ते प्रभुजी को दांतों से काटे... ऐसें अनार्य देश में महावीरस्वामीजी ने छह (6) महिने पर्यंत ग्रामानुग्राम विहार कीया था... और ऐसे विषम उपसर्गों में भी निरतिचार संयामानुष्ठान का परिपालन कीया था... v सूत्रसार : - पूर्व गाथा में बताया गया हे कि- अनार्य लोग भगवान पर कुत्तों की तरह दान्तों का प्रहार करते थे। प्रस्तुत गाथा में बताया गया है कि- वे अनार्य मनुष्य जब किन्हीं कुत्तों को भगवान पर झपटते हुए देखते तो उन्हें दूर नहीं हटाते, किंतु तमाशा देखने के लिए वहां खडे हो जाते और उन्हें छू-छू करके और अधिक काटने की प्रेरणा देते थे। ऐसे क्रूर हृदय के लोगों में कभी कोई एक-आध व्यक्ति ही ऐसा निकलता, जो कुत्तों को दूर करता था। भगवान स्वयं कुत्तों को हटाते नहीं थे। वे इस कार्य को निर्जरा का कारण समझकर समभाव पूर्वक सहन करते थे। यह उनकी सहिष्णुता एवं वीरता का एक अनूठा उदाहरण है। उस प्रदेश में दिए गए कष्टों के विषय में सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I. सूत्र // 5 // // 308 // 1-9-3-5 . एलिक्खए जणा भुज्जो, बहवे वज्जभूमि फरुसासी। लट्ठिं गहाय नालियं, समणा तत्थ य विहरिंसु // 308 // संस्कृत-छाया : ईदृक्षाः जनाः भूयः बहवः वज्रभूमौ परुषाशिनः / यष्टिं गृहीत्वा नालिका, श्रमणाः तत्र विजह्वः॥ 308 //