Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 9 - 4 - 14 (331) 319 करतें थे, और यदि निर्दोष आहार प्राप्त न हो, तब वे अपने धर्मध्यान में अविचलित रहतें थे... परंतु कभी भी दुष्प्रणिधानादि से आर्त्तध्यान नहि करते थे... श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामीजी गोदोहिकासन या वीरासनादि अवस्था में रहकर प्रसन्न मुख से सदा धर्मध्यान या शुक्लध्यान करते थे... ___ परमात्मा धर्मध्यान में अनुप्रेक्षा करते थे, वइ इस प्रकार- इस विश्व के ऊर्ध्वलोक, अधोलोक एवं तिर्यग्लोक में जो कोइ जीव एवं परमाणु आदि पदार्थ रहे हुए हैं, उन द्रव्यों का एवं उन द्रव्यों के पर्यायों के नित्य एवं अनित्यादि स्वरूप का ध्यान करते थे... तथा समाधि में रहकर अंत:करण की शुद्धि को देखते हुए धर्मध्यान करतें थे... V सूत्रसार : साधना में ध्यान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ध्यान के लिए सबसे पहली आवश्यकता आसन की है। ध्यान के लिए उत्कुटुक आसन, गोदोहिक आसन, आदि प्रसिद्ध है। इन आसनों से साधक शरीर को स्थिर करके मन को एकाग्र करके आत्म-चिन्तन में संलग्न होता है। भगवान महावीर भी दृढ़ आसन से धर्म एवं शुक्ल ध्यान ध्याते थे। इससे मन विषयों से हटकर आत्म-स्वरूप को समझने में लगता है, इससे कर्मों की निर्जरा होती है। ध्येय वस्तु द्रव्य और पर्याय रूप होती है। अत: वह नित्यानित्य होती है। यह हम पहले बता चूके हैं किप्रत्येक वस्तु द्रव्य रूप से नित्य है और पर्याय रूप से अनित्य है। अतः ध्यान में उसके यथार्थ स्वरूप का चिन्तन किया जाता है। पातञ्जल योगदर्शन में भी योग के आठ अंग माने गए हैं- 1. यम, 2. नियम, 3. आसन, 4. प्राणायाम, 5. प्रत्याहार, 6. धारणा, 7. ध्यान, 8. समाधि। कितनेक विभिन्न मतवाले प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि को योग का अंग मानते हैं। कई साधक उत्साह, निश्चय, धैर्य, संतोष, तत्त्वदर्शन और देश त्याग को ही योग साधना मानते हैं और कोई मन के निरोध को ही सर्व सिद्धि का कारण मानता है। ___ प्रस्तुत गाथा में आत्म विकास के लिए 3 साधन बताए हैं- 1. आसन,ध्यान और ध्येय-समाधि। आसनों के द्वारा साधक मन को एकाग्र कर लेता है। जैन योग ग्रन्थों में कुछ आसन ध्यान योग्य बताए गए हैं। जैसे- 1. पर्यंकासन, 2. अर्द्ध पर्यंकासन, 3. वज्रासन, 4. वीरासन, 5. उत्कुटुकासन, 6. गोदोहिकासन और 7. कायोत्सर्ग। इसके बाद यह बताया गया है कि- जिस आसन से सुख पूर्वक स्थित होकर मुनि मन को एकाग्र कर सके, वही सबसे श्रेष्ठ आसन है। ध्यान की विधि बताते हुए लिखा है कि- अत्यंत निश्चल सौम्यता युक्त एवं स्पन्दन से रहित दोनों नेत्रों को नाक के सामने स्थिर करे। ध्यान के समय मुख