Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
View full book text
________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 9 - 1 - 15 (279) 253 II संस्कृत-छाया : ___ भगवान् च एवमज्ञासीत्, सोपधिकः हु लुप्पते बालः। कर्म च सर्वशः ज्ञात्वा तत् प्रत्याख्यातवान् पापक भगवान् // 279 // III सूत्रार्थ : भगवान ने यह जान लिया कि- अज्ञानी आत्मा कर्म रूप उपधि-बंधन से आबद्ध हो जाता है। अतः कर्म के स्वरूप को जानकर भगवान ने पापकर्म का परित्याग कर दिया / IV टीका-अनुवाद : श्री महावीरस्वामीजी यह बात जानते थे कि- कर्म स्वरूप द्रव्य एवं भाव उपधि वाले संसारी जीव, संसार में विभिन्न प्रकार के क्लेश-कष्ट का अनुभव करते हैं, अतः जीव का सच्चा शत्रु एक मात्र कर्म हि है... इस बात को सभी प्रकार से जानकर श्रमण भगवान् महावीरस्वामीजी ने कर्म का परित्याग कीया है, तथा उस कर्म के कारणभूत पापाचरण का भी सर्वथा त्याग कीया है... v सूत्रसार : कर्म के कारण ही संसारी जीव सुख-दुःख का अनुभव करते हैं। वे विभिन्न योनियों में विभिन्न तरह की वेदनाओं का संवेदन करते हैं। अज्ञानी जीव अपने स्वरूप को भूल कर पापकर्म में आसक्त रहते हैं, इससे वे संसार में परिभ्रमण करते हैं। इस लिए भगवान ने कर्म के स्वरूप को समझकर उसका परित्याग कर दिया / इस तरह भगवान ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र से युक्त थे। क्योंकि- कर्मो के स्वरूप को जानने का साधन ज्ञान है और दर्शन से उसका निश्चय होता है और त्याग का आधार चारित्र है। इस तरह रत्नत्रय की साधना से आत्मा निष्कर्म हो जाती है। आगम में बताया गया है कि- आत्मा ज्ञान के द्वारा पदार्थो के यथार्थ स्वरूप को जानता है, सम्यग् दर्शन से उस परिज्ञात स्वरूप पर विश्वास करता है, चारित्र से आने वाले नए कर्मो के द्वार को रोकता है और तप के द्वारा पूर्व काल में बन्धे हुए कर्मो को क्षय करता हैं। भगवान महावीर भी इन चारों तरह की साधना से युक्त थे और ज्ञान दर्शन चारित्र एवं तप से समस्त कर्मो को क्षय करके उन्होंने निर्वाण पद को प्राप्त किया। उपधि द्रव्य एवं भाव के भेद से दो प्रकार की है। आत्मा के साथ पदार्थो का संबन्ध द्रव्य उपधि है और राग-द्वेष आदि विकारों का सम्बन्ध भाव उपधि है। भाव उपधि से द्रव्य उपधि प्राप्त होती है और द्रव्य उपधि भाव उपधि-राग-द्वेष को बढ़ाने का कारण भी बनती है। इस तरह दोनों उपधियें संसार का कारण हैं।दोनों उपधियों का नाश कर देना ही मुक्ति