Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 76 1 -6-5-1(207) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन % 3D यहां साधुओं को नारकों से उपसर्ग होना असंभव है तथा तिर्यंच एवं देवों के द्वारा भी कभी कभी हि उपसर्ग हो, अतः साधुओं को मनुष्यों के द्वारा हि अनुकूल एवं प्रतिकूल उपसर्ग की अधिकतर संभावना होने से यहां सूत्र में “जन" याने मनुष्य शब्द का प्रयोग कीया गया है... अथवा जो उत्पन्न होते हैं; जन्म धारण करते हैं वे जन... और वे तिर्यंच मनुष्य एवं देव हि “जन' शब्द से अभिहित है... और वे “जन" अनुकूल एवं प्रतिकूल में से कोइ एक या दोनों प्रकार के उपसर्ग के द्वारा साधुओं को उपसर्ग करे... देव के द्वारा होनेवाले उपसर्ग के चार प्रकार है... जैसे कि- 1. हास्य से, 2. द्वेष से, 3. विमर्श याने परीक्षा के लिये, और 4. शेष अन्य विभिन्न प्रकार से... 1. . हास्य से उपसर्ग... जैसे कि- कोइ क्रीडाप्रिय व्यंतर देव मात्र हास्य-विनोद के लिये हि विविध प्रकार के उपसर्ग करतें हैं... यथा- भिक्षा के लिये गांव में गये हुए क्षुल्लक / ' साधुओं को क्रीडाप्रियता से उपसर्ग कीया... प्रद्वेष से - जैसे कि- माघ मास की रात्रि में कोइ व्यंतरी देवी तापसी का रूप धारण करके जटा में शीतल जल भरकर साधु के उपर छीटके... 3. विमर्श से... जैसे कि- “यह साधु दृढधर्मी है; या नहि" इत्यादि परीक्षा के लिये अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्ग करे... यथा कोइक संविग्न साधु के संयमाचरण से प्रभावित हुइ कोइ व्यंतरी देवी स्त्रीवेश को धारण करके शून्य देवकुलिका में ठहरे हुए साधु को अनुकूल उपसर्ग करे... और जब देखे कि- यह दृढ धर्मी है... तब प्रगट होकर वंदन करे... इत्यादि... पृथग्विमात्रा से... जैसे कि- उपर कहे गये हास्यादि तीन में से कोई एक प्रकार से उपसर्ग का प्रारंभ करके अन्य प्रकार के उपसर्ग से पूर्ण करे... यथा- भगवान श्री महावीर प्रभु को छद्मस्थ काल में संगमक-देव ने विर्मश से प्रारंभ कीये हुए उपसर्ग प्रद्वेष के साथ उपसर्ग पूर्ण कीये... इत्यादि... तथा मनुष्यों के द्वारा भी चार प्रकार से उपसर्ग होता है... 1. हास्य, 2. प्रद्वेष, 3. विमर्श, और 4. कुशील प्रतिसेवन... 1. हास्य से... देवसेना नाम की गणिका, जब हास्य से क्षुल्लक मुनी को उपसर्ग करती थी तब क्षुल्लक साधु ने दंडे से उसको मारा, और जब वह राजा के पास फरीयाद करने गइ तब क्षुल्लक साधु ने श्रीगृह के उदाहरण से राजा को प्रतिबोधित कीया... इत्यादि... 2. प्रद्वेष से... गजसुकुमाल मुनी को श्वशुर सोमभूति (सोमिल ब्राह्मण) ने माथे पे मिट्टी की पाली बनाकर अंगारे रखे...