________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-8-5 - 2 (230) 155 हुं... और वैयावच्च करनेवाले अन्य साधु आरोग्यवाले होने से उचित कार्य करने में समर्थ हैं... यहां परिहारविशुद्धिकल्पवाले साधु की अनुपारिहारिक साधु सेवा करतें हैं अथवा तो कल्प में रहे हुए साधु की अन्य साधु वैयावच्च-सेवा करे... किंतु यदि वे साधु भी ग्लान हो तब अन्य साधु सेवा करते हैं... इसी प्रकार यथालंदिक कल्पवाले साधु की सेवा-वैयावच्च के विषय में जानीयेगा... किंतु विशेषता यह है कि- यथालंदिक साधु की सेवा अन्य स्थविर साधु करते हैं... जैसे कि- समान कल्पवाले कल्प में रहे हुए अन्य साधु-साधर्मिको की सेवा का मैं स्वीकार करुंगा... यहां साधुओं का परस्पर ऐसा आचार है, अत: उस आचार को पालन करनेवाला ग्लान साधु भक्तपरिज्ञा के द्वारा जीवित का त्याग करे किंतु आचार का खंडन कभी भी न करे... इस प्रकार अन्य साधर्मिक साधु की सेवा-वैयावच्च का स्वीकार करना मान्य है... इसी प्रकार वह साधु भी अन्य साधु की सेवा करे... जैसे कि- आरोग्यवाला ऐसा मैं अन्य ग्लान साधु न कहे तो भी कर्म-निर्जरा की कामना से एवं उपकार करने के भाव से उन ग्लान साधुओं की वैयावच्च-सेवा करूं... इस प्रकार प्रतिज्ञा लेकर भक्तपरिज्ञा से प्राणो का त्याग करे किंतु प्रतिज्ञा का त्याग न करे... अब प्रतिज्ञा के विषय में चतुर्भंगी कहते हैं... 1. सेवा करुंगा और सेवा स्वीकारुंगा... 2. सेवा करुंगा किंतु सेवा नहि स्वीकारुंगा.. 3. सेवा नहि करूंगा किंतु सेवा स्वीकारुंगा... 4. सेवा नहि करूंगा और सेवा नहि स्वीकारुंगा... जैसे कि- कोइ साधु ऐसी प्रतिज्ञा करे कि- अन्य ग्लान साधर्मिक साधु के लिये आहारादि की गवेषणा करके ग्लान साधु की सेवा-वैयावच्च करुंगा... तथा अन्य साधर्मिक साधु ने लाये हुए आहारादि का स्वीकार करुगा... इस प्रकार प्रतिज्ञा लेकर साधु अन्य साधु की वैयावच्च करे...१. तथा कोइ साधु ऐसी प्रतिज्ञा करे कि- मैं अन्य ग्लान साधु के लिये आहारादि की गवेषणा करुंगा, किंतु अन्य साधु ने लाये हुए आहारादि का स्वीकार नहि करुंगा...२. तथा कोइ साधु ऐसी प्रतिज्ञा करे कि- मैं अन्य साधु के लिये आहारादि की गवेषणा नहि करूंगा किंतु अन्य साधु ने लाये हुए आहारादि का स्वीकार करुंगा...३. तथा कोइ साधु ऐसी प्रतिज्ञा करे कि- मैं अन्य साधु के लिये आहारादि की गवेषणा नहि करूंगा और अन्य साधु ने लाये हुए आहारादि का स्वीकार भी नहि करुंगा...४. 2.