________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 8 - 8 - 20 (259) 203 V सूत्रसार : पंडित मरण को प्राप्त करने के लिए तीन तरह के अनशन बताए गए हैं... १-भक्त प्रत्याख्यान, २-इंगितमरण और ३-पादोपगमन / पहले दो प्रकार के मरण का उल्लेख कर चुके हैं। अंतिम अनशन का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि- यह अनशन पूर्व के दोनों अनशनों से अधिक कठिन है। भक्तप्रत्याख्यान में साधक अपनी इच्छानुसार किसी भी स्थान में आ जा सकता है, परन्तु इङ्गितमरण में साधु मर्यादित स्थान से बाहर शरीर का संचालन नहीं करतें किंतु मर्यादित भूमि में आवागमन करतें हैं, जब कि-पादोपगमन में साधक बिल्कुल स्थिर रहता है। वह जिस स्थान पर जिस आसन से-बैठे हुए या लेटे हुए, अनशन स्वीकार करता है, अन्तिम सांस तक उसी आसन रहता है। इधर-उधर घूमना-फिरना तो दूर रहा, वह शरीर का संचालन भी नहीं करतें... अर्थात् काष्ठवत् सर्वथा निश्वेष्ट रहते हैं... शारीरिक हलन-चलन न करने के कारण या तो ताप आदि से मूर्छा आदि आ जाने पर उस साधु के शरीर को मृत समझ कर कोई पशु-पक्षी खाने आए, तब भी वह साधु वहां वहीं निश्चेष्ट अवस्था में रहकर समभाव पूर्वक उत्पन्न होने वाले परीषहों को सहन करे। इसका तात्पर्य यह है कि- अपने शरीर पर बिल्कुल ध्यान न दे, किंतु आत्म-चिन्तन में संलग्न रहे। यह हि इस अनशन की विशेषता है और इसी कारण यह पूर्वोक्त दोनों अनशनों से श्रेष्ठ माना गया है। इस बात का विशेष समर्थन करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 20 // // 259 // 1-8-8-20 * अयं से उत्तमे धम्मे, पुव्वट्ठाणस्स पग्गहे / अचिरं पडिलेहित्ता, विहरे चिट्ठे माहणो // 259 // // संस्कृत-छाया : अयं सः उत्तमो धर्मः, पूर्वस्थानस्य प्रग्रहः। अचिरं प्रत्युपेक्ष्य, विहरेत् तिष्ठेत् माहनः॥ 259 // III सूत्रार्थ : यह पादोपगमन अनशन उत्तम धर्म है और पूर्व कथित दोनों अनशनों से श्रेष्ठतर है। इस अनशन को स्वीकार करने वाले मुनि निर्जीव स्थंडिल भूमि को देखकर वहां पादपोपगमन अनशन का स्वीकार करे एवं यथाविधि परिपालन करे...