________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 9 - 0 - 0 // 223 देवगति आदि तीस कर्म एवं हास्यादि चार कर्मो का उपशमश्रेणी में कहे गये अनुक्रम से बंधविच्छेद करता है... तथा अनिवृत्तिकरण नाम के नवमे गुणस्थानक में थीणद्धी त्रिक तथा नरकगति, नरकानुपूवी, तिर्यंचगति, तिर्यंच आनुपूर्वी, एकेन्द्रिय जाति, बेइंद्रिय जाति, तेइंद्रिय जाति, चउरिद्रिय जाति, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण 3 + 13 = 16 कर्मो का क्षय करता है... उस के बाद अप्रत्याख्यानीय एवं प्रत्याख्यानीय 4 + 4 = 8 आठ कषायों का क्षय करता है... उस के बाद नपुंसक वेद का क्षय करता है, उस के बाद हास्यादि षट्क का क्षय करता है, और उस के बाद पुरूषवेद का क्षय करता है... उस के बाद संज्वलन क्रोध, मानएवं माया का क्षय करता है, और संज्वलन लोभ का खंड-खंड कर के क्षय करता है... किंतु जब संज्वलन लोभ के बादर खंडो का क्षय करता है तब वह साधु बादर संपराय याने अनिवृत्तिकरण नाम के नववे गुणस्थानक में बिराजमान है, ऐसा माना गया है, और जब संज्वलन लोभ के सूक्ष्म खंडो का क्षय करता है, तब सूक्ष्म संपराय नाम के दशवे गुणस्थानक में अवस्थित है ऐसा कहा गया है... सूक्ष्मसंपराय नाम के दशवे गुणस्थानक के अंतिम समय में संज्वलनलोभ के उदयविच्छेद के समय ज्ञानावरणीयादि सोलह (16) कर्म प्रकृतियों का बंध विच्छेद होता है, उस के बाद वह साधु क्षीणमोह नाम के बारहवे गुणस्थानक में प्रवेश करता है... बारहवे गुणस्थानक का काल है अंतर्मुहूर्त मात्र... इस क्षीणमोह नाम के बारहवे गुणस्थानक में अंतर्मुहूर्त काल पर्यंत रह कर वह साधु द्विचरमसमय याने उपांत्य समय में निद्राद्विक का क्षय करता है, और अंतिम समय में ज्ञानावरणीय पांच, अंतराय पांच तथा दर्शनावरणीय चार एवं चौदह (14) कर्मो का क्षय कर के निरावरण ज्ञानदर्शनवाला वह साधु केवलज्ञानी होता है... यह सयोगी केवली नाम का तेरहवा गुणस्थानक है... ___ सयोगी केवली नाम के तेरहवे गुणस्थानक में वह साधु मात्र एक हि साता वेदनीय कर्म का बंध करता है... इस तेरहवे गुणस्थानक का काल, जघन्य से अंतर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट से देशोन अर्थात् नव वर्ष न्यून एक पूर्व क्रोड वर्ष पर्यंत का कहा गया है... __. तेरहवे गुणस्थानक का जब मात्र अंतर्मुहूर्त आयुष्य शेष रहा है, ऐसा प्रतीत हो, एवं उस समय आत्म प्रदेशों में वेदनीयकर्म के दलिक अधिक हो तब वह केवलज्ञानी साधु, वेदनीयकर्म के दलिकों को आयुष्य कर्म के समान करने के लिये समुद्घात की प्रक्रिया करता है... वह इस प्रकार...