________________ 232 // 1-9-1-3 (267) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन ने भी इसी बात का समर्थन किया है और आगम के पाठ का उद्धरण देकर वस्त्र रखने की परम्परा का समर्थन किया है। “अनुधर्मिता" शब्द का अर्थ चूर्णि में गर्तानुगत किया है। इसका अभिप्राय यह है कि- भगवान ने दीक्षा के समय एक वस्त्र रखने की परम्परा का पालन किया हैं... तथा चूर्णि में इसका एक दुसरा पाठ ‘अनुकालधम्म' भी दिया गया है और उसका अभिप्राय यह है कितीर्थंकर परमात्मा सोपधिक-(वस्त्र-पात्र आदि उपधि सहित) धर्म का उपदेश देते हैं... अनुधर्मिता शब्द का प्रयोग संस्कृत कोष में नहीं मिलता, किन्तु पालिकोष को देखने से ज्ञात होता है कि- पालि में यह शब्द 'अनुधम्मता' रूप से मिलता है। कोष में इसका अर्थ-धर्म सम्मतता, (धर्म के अनुरूप) किया गया है। पालि में ‘अनुधम्म' शब्द का भी प्रयोग मिलता है। उसका भी (नियम के अनुसार), (धर्म सम्मतता), (सम्बन्ध), (सार), (दृढता, अनुकूलता), (सच्चाई) अर्थ किया गया है। पालि में 'धम्माणुधम्म' शब्द का प्रयोग भी मिलता है। उसका अर्थ है- मुख्य-गोण सभी प्रकार का धर्म। इन शब्दों के प्रयोग और उनके अर्थों पर ध्यान दिया जाए तो ‘अनुधार्मिकता' का अर्थ होता हे कि- भगवान महावीर ने धर्म के अनुकूल आचरण किया। और चूर्णिकार एवं टीकाकार ने भी जो अर्थ किया है, वह.भी असंगत नहीं है। क्योंकिअब यह प्रश्न उठता है कि- धर्म कौन सा ? तब उत्तर यही मिलता है- 'जो पूर्व में आचरण का विषय बना हो।' अत: वह केवल धर्म नहीं बल्कि अनुधर्म-परम्परा से प्रवहमान धर्म है। चूर्णिकार का ‘अनुकालधर्म' भी सामर्थ्य लब्ध अर्थ माना जा सकता है। जैसा उन्होंने स्वयं आचरण किया, वैसा आचरण दूसरे साधु भी करें। इस अपेक्षा से ‘अनुकालधर्म' भी असंगत नहीं कहा जा सकता है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि- भगवान महावीर ने शीत आदि निवारण करने की भावना से वस्त्र को स्वीकार नहीं किया। क्योंकि- दीक्षा लेते ही उन्होंने यह प्रतिज्ञा धारण कर ली थी कि- मैं इस वस्त्र का हेमन्त में उपयोग नहीं करूंगा अर्थात् सर्दी के परीषह से निवृत्त होने के लिए इससे अपने शरीर को आवृत्त नहीं करूंगा। दीक्षा लेने के पूर्व भगवान के शरीर पर चन्दन आदि सुगन्धि पदार्थों का विलेपन किया गया था। उस सुगन्ध से आकर्षित होकर भ्रमर आदि जन्तु भगवान को कष्ट देने लगे। उसका वर्णन करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 3 // // 267 // 1-9-1-3 चत्तारि साहिए मासे, बहवे पाणाजाइया अभिगम्म /