Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-8-8- 3 (242) // 183 II संस्कृत-छाया : कषायान् प्रतनून् कृत्वा अल्पाहारः तितिक्षते / अथ भिक्षुः ग्लायेत् आहारस्यैव अन्तिकम् // 242 // III सूत्रार्थ : ___मुनि पहले कषाय की अल्पता करके फिर अल्पाहारी बने और आक्रोश आदि परीषहों को समभाव से सहन करे। यदि आहार के विना ग्लानि पैदा होती हो तो वह आहार को स्वीकार करले, किंतु यादि ग्लानि न हो तब आहार का सर्वथा त्याग करके अनशन व्रत स्वीकार करले। IV टीका-अनुवाद : अनशन-मरण के लिये तत्पर ऐसा मुनी श्रेष्ठ प्रकार की भाव संलेखना करे... वह इस प्रकार- कष याने संसार, उस संसार की प्राप्ति के कारणभूत क्रोधादि कषायों को अल्प करके साधु आहार वापरे, और वह भी बहोत हि थोडा... अर्थात् संलेखना की विधि के अनुसार छठ्ठ या अठ्ठम ,आदि तपश्चर्या करे, और जब तपश्चर्या का पारणा हो, तब भी साधु बहोत हि थोडा (अल्प) आहार ग्रहण करे... यदि थोडा (अल्प) आहारादि ग्रहण करने पर भी क्रोध उत्पन्न हो तब साधु उस क्रोध का उपशमन करे.. अर्थात् सामान्य लोगों के भी कठोर वचनों को प्रशम भाव से सहन करे, अर्थात् माफ करे... अथवा तो रोग की पीडा हो, तो उस पीडा को सहन करे... .. यदि साधु संलेखना करने की विधि में अल्प आहार प्राप्त होने पर ग्लानि का अनुभव (एहसास) करता है तब उस अल्प आहार का भी त्याग करे... अर्थात् संलेखना के क्रम को छोडकर अनशन का स्वीकार करे... किंतु आहार ग्रहण करने की इच्छा मात्र भी न करे.. वह इस प्रकार-संलेखना के वख्त अल्प आहारादि की प्राप्ति में साधु ऐसा न सोचे कि- कितनेक दिन पर्यंत जी चाहे ऐसा आहारादि ग्रहण करूं, और बाद में शेष संलेखनाकी विधि पूर्ण करुंगा... इत्यादि कुविकल्प न करे... v सूत्रसार : समाधि मरण को प्राप्त करने के लिए संलेखना करना आवश्यक है और संलेखना के लिए तीन बातों की आवश्यकता है- 1. कषाय का त्याग, 2. आहार का कम करना और 3. परीषहों को सहन करना। कष् का अर्थ संसार है और आय का अर्थ लाभ-प्राप्ति है, अतः कषाय का अर्थ है- संसार परिभ्रमण होना। आहार से स्थूल शरीर को पोषण मिलता