Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 71-8-4-2 (225) // 141 मनन में लगना चाहिए, वह उसमें न लगाकर अनावश्यक उपधि को संभालने में ही व्यतीत कर देगा। इस तरह स्वाध्याय एवं चिन्तन में विघ्न न पडे तथा मन में संग्रह एवं ममत्व की भावना उबुद्ध न हो, इस अपेक्षा से साधु को मर्यादित उपकरण रखने का उपदेश दिया गया प्रस्तुत सूत्र में वस्त्र धोने का नो निषेध किया गया है, वह भी विशिष्ट अभिग्रह संपन्न मुनि के लिए ही किया गया है, ऐसा प्रतीत होता है। क्योंकि- स्थविरकल्पी मुनि कुछ कारणों से वस्त्र धो भी सकते हैं। विभूषा के लिए वस्त्र धोने का निषेध किया गया है और उसके लिए प्रायश्चित भी बताया गया है। परन्तु, भगवान महावीर के शासन के सब साधुओं के लिए-भले ही वे जिनकल्पी हों या स्थविरकल्पी, रंगीन वस्त्र पहनने का निषेध है। इस तरह अभिग्रह निष्ठ मुनि मर्यादित वस्त्र-पात्र आदि का उपयोग करे। परन्तु, ग्राम ऋतु आने पर उसे क्या करना चाहिए, इस बात का उल्लेख करते हुए सूत्रकार महर्षि आगे का सूत्र कहते हैं... I सूत्र // 2 // // 225 // 1-8-4-2 . अह पुण एवं जाणिज्जा - उवाइक्कं ते खलु हेमंते, गिम्हे पडिवण्णे अहापडिजुण्णाई वत्थाई परिट्ठविज्जा, अदुवा संतरुत्तरे अदुवा ओमचेले अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले // 225 // // संस्कृत-छाया : अथ पुनः एवं जानीयात् - अपक्रान्तः खलु हेमन्तः, ग्रीष्मः प्रतिपन्नः, यथापरिजीर्णानि वस्त्राणि परिष्ठापयेत्, अथवा सान्तरोत्तरः अथवा अवमचेलकः अथवा एकशाटकः अथवा अचेलः // 225 // III सूत्रार्थ : - वह अभिग्रहधारी भिक्षु जब यह समझ ले कि- हेमन्त-शीत काल चला गया है और ग्रीष्मकाल आ गया है और ये वस्त्र भी जीर्ण-शीर्ण हो गये है। ऐसा समझकर वह उनको त्याग दे। यदि निकट भविष्य में शीत की संभावना हो तो मजबूत वस्त्र को धारण कर ले, अन्यथा पास में पड़ा रहने दे। शीत कम होने पर वह एक वस्त्र का परित्याग कर दे और शीत के बहुत कम हो जाने पर दूसरे वस्त्र का भी त्याग कर दे, केवल एक वस्त्र रखे जिससे लज्जा का निवारण हो सके या शरीर आच्छादित किया जा सके। यदि शीत का सर्वथा अभाव हो जावे तो वह रजोहरण और मुखवस्त्रिका को रखकर वस्त्र मात्र का त्याग करके अचेलक बन जाए।