Book Title: Acharang Sutram Part 03
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 9 - 8 - 4 - 1 (224) 139 अल्प-वस्त्रवाला भी कहलाता है। यह वस्त्रधारी मुनि की समग्रता याने सदाचार है। IV टीका-अनुवाद : जिनशासन में प्रतिमा-प्रतिपन्न या जिनकल्पिक साधु अच्छिद्रपाणि होतें है, उनको पात्र के उपकरणों के साथ पात्र एवं तीन कपडे (वस्त्र), यह उनकी ओघ-उपधि है, औपग्रहिक नहि है... वह इस प्रकार- शिशिर (ठंडी) आदि ऋतु में सूती दो कपडे कि- जो ढाइ हाथ लंबे-चौडे होते हैं, तथा तीसरा और्णिक याने ऊनी शाल (कामली)... वह जिनकल्पिक साधु शीत (ठंडी) होने पर भी अन्य चौथे वस्त्र की इच्छा नहि करतें... वह इस प्रकार- जीस साधु के पास उपर कहे गये तीन वस्त्र हैं वह साधु जब शीत याने ठंडी पडे तब एक सूती वस्त्र पहने... एक कपडा ओढने पर भी यदि शीत सहन न होवे तब दुसरा सुती कपडा ओढे... पहने... किंतु यदि अतिशय शीत-ठंडी हो तब दो सूती कपडे के उपर गरम ऊन की कामल से शरीर को ढांक याने कामली का उपयोग करे... परंतु इतना ध्यान रहे कि- ऊन की कामली बाहार की और हि रहे... तीन वस्त्र एवं चौथा उपकरण पात्र... गिरते हुए आहारादि का जो रक्षण करे वह पात्र... पात्र ग्रहण करने से पात्र के सात निर्योग याने उपकरणों का भी ग्रहण हो जाता है... क्योंकि- पात्र के उपकरणों के बिना पात्र का ग्रहण संभवित हि नहि है... और वे पात्र के सात निर्योग याने उपकरण इस प्रकार हैं... 1. पात्र, 2. पात्रबंध, 3. पात्रस्थापन, 4. पात्रकेशरिका (चरवली), 5. पल्ले (पटलानि), 6. रजस्त्राण और 7. गुच्छक... यह सात . पात्रनिर्योग हैं... इस प्रकार पात्र के सात उपकरण तथा तीन वस्त्र एवं रजोहरण तथा मुहपत्ती इस प्रकार बारह (12) प्रकार की उपधि-उपकरणवाले जिनकल्पिक साधु को ऐसा विचार कभी भी नहि आता कि- इस शीतकाल में तीन कपडों (वस्त्र) से मेरी ठंड दूर नहि होती, अतः मैं चौथे वस्त्र की याचना करूं... यदि ऐसा विचार-अध्यवसाय हि न होवे तो फिर याचना करने की तो बात हि कहां रही ?... किंतु निर्वस्त्र ऐसे जिनकल्पवले साधु के पास यदि तीन वस्त्र नहि हैं और शीतकाल में शीत-ठंड पडे तब वे जिनकल्पवाले साधु एषणीय वस्त्रों की याचना करें, किंतु उत्कर्षण और अपकर्षण रहित ऐसे अपरिकर्मवाले वस्त्रों की हि याचना करें इत्यादि... . वस्त्रैषणा के चार प्रकार है... 1. उद्दिष्ट... 2. पह, 3. अंतर, 4. उज्झितधर्मा... इन चार में से अंतिम दो एषणा अग्राह्य है... और शेष दो एषणा को ग्राह्य कहा गया है... और उन दोनो एषणा में भी कीसी एक एषणा का अभिग्रह करें... इस प्रकार याचना से प्राप्त हुए वस्त्रों को जैसे हि ग्रहण कीया था वैसा हि पहने... किंतु उन वस्त्रों में उत्कर्षण आदि याने धोना आदि परिकर्म न करें... वह इस प्रकार- जिनकल्पवाले साधु अचित्त जल से भी वस्त्रों