________________ 96 // 1 - 8 - 0 - 0 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन राजा ने वैद्य का सन्मान-बहुमान कीया और राजा भी प्रसन्न रहा... __इसी प्रकार आचार्यजी की भी तीक्ष्ण-कठोर निर्देशात्मक आज्ञा परिणाम की दृष्टि से शीतल है... जब ऐसा समझाने पर भी वह साधु शांत न हो तब शेष साधुओं की सुरक्षा के लिये सडे हए नागरवेल के पत्ते की तरह उस साध को गच्छ से बाहार निकाल देना चाहिये... और यदि आचार्यजी के उपदेश का स्वीकार करे तो गच्छ में हि रहे हुए उस साधु को दुर्वचनादि से कदर्थना करनी चाहिये... जब वह साधु इस परिस्थिति में रहता हुआ कोप न करे, तब जानीयेगा कि- अब वह साधु भाव संलेखना से शुद्ध है... तब उस साधु को अनशन देने के साथ सार-संभाल के द्वारा समाधि प्राप्त करावें... अब अनशन स्वीकारनेवाला साधु कैसा हों ? और कितने काल तक आत्मा की संलेखना करें ? यह बात अब नियुक्तिकार स्वयं कहतें हैं... नि. 270, 271, 272, 273 जिस प्रकार पक्षी अपने बच्चों को प्रयत्न पूर्वक सार-संभाल के द्वारा उडने योग्य बनता. है, उसी प्रकार आचार्यजी अपने शिष्य को या आगंतुक साधु को सूत्र अर्थ एवं तदुभय के द्वारा अनशन के योग्य बनाने के लिये बारह वर्ष (साल) पर्यंत की संलेखना करवातें हैं... वह इस प्रकार-प्रथम के चार वर्ष पर्यंत विविध तपश्चर्या, जैसे कि- चोथ भक्त (उपवास) छट्ठ (बेला) अट्ठम (तेला) चार उपवास, पांच उपवास इत्यादि एवं पारणे में विगइवाला या बिना विगइ का आहार... तथा पांचवे वर्ष से आठवे वर्ष (चार वर्ष) पर्यंत बिना विगइ से हि पारणा करावें... तथा नववे एवं दशवे वर्ष (दो वर्ष) में आंबिल के बाद उपवास और पारणे में आंबिल पुनः उपवास, इस प्रकार आंबिल-उपवास आंबिल दो वर्ष पर्यंत करावें... उसके बाद ग्यारहवे वर्ष में पहले छह महिनों में अतिविकृष्ट तपश्चर्या न करें अर्थात् उपवास या छट्ठ तप करावें और पारणे में आंबिल करें... तथा अंतिम छह महिनों में विकृष्ट तपः करें अर्थात् अट्ठम, चार उपवास, पांच उपवास आदि और पारणे में आंबिल... तथा बारहवे वर्ष में कोटि सहित आंबिल याने प्रतिदिन आंबिल करावें... और बारहवे वर्ष के चार महिने शेष रहे, तब निरंतर (सतत) नमस्कार महामंत्र के पाठ (उच्चार) के लिये मुख शोष न हो, इस वास्ते बार बार तैल का कोगला (कुले) करे... इस प्रकार अनुक्रम से सभी प्रकार की संलेखना विधि करने के बाद यदि सामर्थ्य हो, तो गुरुजी की अनुज्ञा से गिरिकंदरा (पर्वत की गुफा) में जाकर स्थंडिल याने निर्जीव भुमी की पडिलेहणा करके पादपोपगमन अनशन करें... या जिस प्रकार समाधि रहे, उस प्रकार इंगितमरण या भक्तपरिज्ञा भक्तप्रत्याख्यान मरण का . स्वीकार करें... यह बारह वर्ष की संलेखना के द्वारा क्रमशः आहार की अल्पता हो, और अनुक्रम