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प्रकाशबेल
अकालिक अकालिक akālika-हिं० वि० [सं०] असान-
यिक । बिना समय का । बे मौके का। अकालीम filim-अ० (व.व.), इलीस
(प० व०) देश, भाग, स्थान-हिं० । कण्ट्री :
((ountry)-ई। अकात्र kava-हि. संज्ञा पुं॰ [सं० अर्क] :
(alotropis vigantea, R. 1}.. प्राक,
मदार । प्रकाशदेवी akasha.tlessiद० एक पौधा विशेष । ' अकाश (स ) पवन akash,s-iita}}-द०
श्रकासबेल, अमरवेल--हिं० । कसूस-का0। ((luscita. RI!::I, Rob.) इं०
मे० मे० । प्रकाशववर-गे kisha badal,-'--हि.
अकासंबल(Cust Restisa, R..) प्रकाशवल्लो akashat]i-सं० स्त्री०
अकासवेल (Crascinta Refloxaner.in.) प्रकाश (-1) बेल akasha, sa-ht:Ja
-हिं० संता पु०सं० अाकाशवेलि] अकाशवरी, अमर-बेल,प्रकाशबेलि, अंबरवेलि, प्राकास बोर, . -हिं० । अकाशग्री, बबल्ली, अमर बली-सं० । प्रकाशवेल, प्रालीकलता, अल्गुसी, हल्दी, अलगुमालता-बं० । अफूतीमूने हिन्दी यु०, अ०। कप से हिन्दी-फा० । करस्युटा रिफ्लेक्मा ( Kusutaa RoxaRiy) केम्सिधा फिलिफॉर्मिस (Cassytha Fili formis,Lin. )-ले। डोडर (Dorlklor) -₹। कोतान, इन्दिरावल्ली, नान्दे-ता०। इन्द्र जाल, पानीतिगे, पञ्चनिगा-ले०, तेलं० । प्रकाश वल्ली--मल० । बेल्लुबल्लि, नेलमुदत्रल्लि, शविगेबल्लि अमरबलि-कना०,कर्ना। अमरबेल, अन्तरबेल, . सोनल, अलरोहल्ला-मह० । अमरबेल-गु०। कोतन-द०। अल्गजड़ी-सन्ता० । नेदमुनवल्ली-- का० । अन्तरवेल-को ? शियन--तु० ।
लतावर्गLY.O. Conclularity उत्पत्ति स्थान प्रायः समस्त भारतवर्ष । वानम्पनिक विवरग-अकामबेल पर्वथा एक
परायी लता है जो डोरे सी कोकर, बेर, अइसे इत्यादि वृक्षों पर जाल की तरह फैली हुई होती है । इसका तना गहरे हरित वर्ण का होता है जिस पर लम्बाई के रुख पीली पीली धारियाँ पड़ी होती है। अंकुर से पतली जड़ निकल कर भूमि में प्रविष्ट होजाती है और तना शीघ्र शीघ्र बढ़ने लगता है। इससे चीपक सूत्र (Suckers) निकल कर निकटस्थ वृत्त की डालियों में निज श्राहार हेतु मार्ग बनाते हैं और उन वृक्ष से श्राहार सम्बन्धी अावश्यक तत्व, जैसे-जल तथा लवण जो वृक्ष में विद्यमान होता है, प्राप्त करते हैं। इस प्रकार को व्यवस्था होजाने पर जड़ सूग्व जाती है और पुनः लता का भूमि से कोई भी सम्बन्ध नहीं रह जाता । ऐसे भी इसके टुकड़े करके वृक्षों पर डाल देने से यह उस पर बढ़ने लगता है। यदि अंकर को कोई उपयुक्र आधार न मिले तो भी वह सूख जाता है। सूक्ष्म परतों के अतिरिक इसमें पत्ते नहीं होते और नही इनसे उनको कोई लाभ होता है । तने को काट कर देग्वने पर बाहर मज़बूत नालीदार रेशे
और मध्य में म गदा दीख पड़ता है। पुष्प श्वेत रंगके पाते हैं,पुष्पवाह्यावरण (Sepals) को हटाने पर भीतरसे मटर के आकार के गोलाकार वीज निकलते हैं। वर्षाकाल में इसकी बेल उगती है तथा एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है। इसी कारण इसको "अमरबेल" ( immortal ) कहते हैं। यह वृक्षों के ऊपर होती है और इसका भूमि से कोई सम्बन्ध नहीं रहता इस कारण इसको आकाराचेल अादि नाम से पुकारते हैं। इसका लेटिन नाम कस्क्युटा (Cusentia) कसूस से, जो अफ़्तीमून (अकारा बेल विलायती) का अरबी पर्याय है, व्युत्पन्न है । देवा-अफ्नोमून। उपयुक्र दोनों लेटिन पर्यायों में से प्रथम अर्थात् कस्क्युटा कॉन्वॉल्ल्युलेसीई वर्ग का तथा द्वितीय अर्थात् कैम्मिथा लॉरेसीई ( Lauractet') वर्ग का पौधा है। छोटे छोटे भेदों के कारण इसकी बहुत मी जातियाँ हे।गई हैं । अस्तु, इनमें से किसी के
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