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प्रथमः ]
भाषाटीकासहितः ।
(१५)
जिह्वाsतिकोमला यस्य स रोगी न विनश्यति ॥ २ ॥ स्वेदहीनो ज्वरो यस्य श्वासो नासिकया सरेत् । कण्ठश्च कफहीनः स्यात्स रोगी जीवति ध्रुवम् ॥३॥ जो रोगी की दृष्टि, कान, मुख ये सौम्प होंय और प्रसन्न दीखे तथा स्वाद और गन्धको जाने उस रोगीको साध्य जानना, इस विषय में संशय नहीं और जिस रोगी के हाथ, पैर गर्म होय शरीरमें मन्द दाह होय और जीभ अत्यन्त कोमल होय ऐसे रोगीका नाश नहीं होय, जिसके पसीना रहित ज्वर होय और श्वास नाककी राह निकले तथा कफहीन कंठ होय ऐसा रोगी नष्ट नहीं होय ॥ १-३ ॥
कालज्ञान ।
अक्षैर्लक्षितलक्षणेन पयसा पूर्णेन्दुना भानुना पूर्वादक्षिणपश्चिमोत्तरदिशां पद्विमासैककम् | छिद्रं पश्यति चेत्तदा दशदिनं धूम्राकृतिं पश्विमे । ज्वालां पश्यति सद्य एव मरणं कालोचितं ज्ञानिनाम् ॥ १॥
जो रोगी पानीमें सूर्य अथवा चन्द्रमा इनके प्रतिबिंब में पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर में छिद्र देखे तो क्रमसे छः तीन, दो और एक इतने महीने जीवे और सूर्य चन्द्रमाका धुएँकामा वर्ण दीखे तो दश दिन. उस प्रतिबिंच में दक्षिणकी ओर ज्वाला देखे तो तत्काल मृत्यु होय, यह कालज्ञान ज्ञानियोंने कहा है ॥ १ ॥
अरुन्धतीं ध्रुवं चैव विष्णोस्त्रीणि पदानि च । आयुहना न पश्यन्ति चतुर्थी मातृमण्डलम् ॥ २ ॥
अरुंधती, ध्रुव, विष्णुके त्रिपद ( श्रवण नक्षत्र ) इनको और चतुर्थ मातृमण्डल (कृत्तिका के तारे ) को भी आयुवाला नहीं देखे ॥ २ ॥
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