Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 349
________________ योगचिन्तामणिः । पुत्रोत्पत्तियोगः । समूलपत्रां सर्पाक्षीं रविवारे समुद्धरेत् । एकवर्णगवां क्षीरे कन्याहस्तेन पेषयेत् ॥ १ ॥ ऋतुकाले पिवेद्वंध्या पलार्द्ध तद्दिने दिने । क्षीरशाल्यन्नमुद्रं च लघ्वाहारं प्रदापयेत् ॥ २ ॥ एवं सप्तदिनं कुर्या द्वंध्यापि लभते सुतम् ॥ ३ ॥ ( ३२८ ) [ मिश्राधिकार: जड और पत्तोंसहित लक्ष्मणा बूटीको रविवार के दिन उखाड लावे उसको एकरंगी गौके दूधमें कन्याक हाथसे पिसवावे जब स्त्री ऋतुमती होय और चौथे दिन जब स्नान कर चुके तब आधा पल इसको बांझ स्त्री प्रतिदिन पीवे और दूधभात और मूंग आदि हलका आहार करें इस प्रकार सात दिन करनेसे बांझ स्त्रीकोभी पुत्रका लाभ होवे ॥ १-३ ॥ श्वेतायाः कंटकार्याश्च मूलं तद्वच्च गर्भकृत् । न कर्म कारयेत् किंचिद्वर्जये-छीतमातपम् ॥ 8 ॥ अश्वगन्धाकषायेण मृद्वनिपरिसाधितम् । ऋतुकाले पिबेद्वंध्या गर्भस्थापनमुत्तमम् ॥ ५ ॥ मातुलिंग शिफां नारी ऋत्वं पयसा पिबेत् । नागकेशर पूरा स्थिचूर्ण वा गर्भदं परम् ॥ ६ ॥ सफेद कटेरीकी जड़भी गर्भदाता है, इसको खानेवाली स्त्री कुछ काम न करे और शरदी गरमी से बचती रहे । असगंधके काढेको मंदी आगसे पकावे इस काढेको ऋतुमती स्त्री पीवे तो वंध्याके पुत्र होय । चिजौरेकी जडको स्त्री स्नान कर चौथे Aho ! Shrutgyanam

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