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कार्यविपाक ] भाषाटीकासहितः। ( ३५७) किनारेमें सफल वृक्ष के नीचे मलमूत्रका त्याग करे तथा थूके उसके सूजनका रोग होवे ॥
विनकर्ता च भोक्तृणां शोफी भवति मानवः ॥
दूसरेके भोगमें जो विघ्न करे वह शोफ (सूजन ) गेगी होरे, १००० गायत्रीका जप, तिल घृतका होम करे । पुत्रीसे गमनकी अंडवृद्धि रोगवाला होवे, वह चान्द्रायणव्रत करे । विना अपराध जो राजा, सेवक के हाथ पैर छेदन करे वह दूसरे जन्म में लँगडा दला होय तथा ढूंडा होय, रुद्रीके १०८ पाठ करे । यज्ञमें विघ्नकर्ता मनुष्य आंतोंकारोगी होय । गुरु और दूसरेका दुःख दाता गोल और गंडमालाका रोगी होय । रंडा खीसे गमनकर्ता रक्त ग्रंथिरोगी होय, कृच्छातिकृच्छू चांद्रायण व्रत करे, सोनेका दान दे । स्वगोत्रकी स्त्रीगमनसे श्लीपदवाला रोगी होय । ब्राह्मणका भोजन चुरानेवाला विद्रधिरोगी होय । अति अभिमानसे, सेहसे, भयसे जो धर्म छोड दें वह व्रणरोगवाला होवे । धर्मको जानकर जो अधर्म करे सो भगंदर रोगी होय, सुवर्ण, रत्न, धान्य और वस्त्र का दान करे ॥
मातृगामी भवेद्यस्तु लिङ्गं तस्य विनश्यति ॥ मातासे गमन करनेवालेका लिंग गल जावे, पूर्वोक्त दान करे । जीवघाती कुष्ठरोगी होता है । वस्त्र चुरानेवाला सफदकुष्ठी होता है, वह सान्तपनव्रत करे । गुरुपत्नीसे गमन करनेवाला दुष्ट चर्मवाला होवे, सान और वस्त्रका दान करे । मल मूत्र त्यागकर जो पवित्रता न करें और उसी तरह भोजन करने लगे उसके गुदारोग होवे। वह चान्द्रायण व्रत करे । दुश्वाणी बोलनेवाला मुखरोगी होवे । दूसरेका भोग देखनेवाला नेत्ररोगी होय, वह चांद्रायण व्रत करे ॥
स्रवद्र्भा भवेत्सा तु बालकं हन्ति या पुरा ॥ जो पूर्वजन्ममें वालकको मारे उसे गर्भस्राक्का रोग हो । जो स्त्री
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