Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 356
________________ कर्मविपाक] भाषाटीकासहितः। (३५) अत्रका चुरानेवाला मनुष्य अजीर्णरोगी होय । शूद्रका अन्न खाने चाला शूलरोगी होता है और अजीण रोगसे पीडित होय । यज्ञकी अग्नि शांत करनेवाला मन्दाग्निका रोगी होय तथा गोमांस खानेबालोंको मन्दाग्नि होय, जो मनुष्यको विष देकर मारे उसके मन्दाग्नि होवे। ये पूर्वोक्त रोगी तीन पल सुवर्ण और अन्न दान करें, अथवा सोनेकी बकरी बनाकर दान करें । हाथी, रथ, घोडेका बिगाडनेवाला कृमिरोगी होवे । पतिके मरनेके पीछे जो स्त्री रंगीन कपडे पहने वह इस जन्ममें कृमिरोगवाली होय, रंगीन बैलका दान करै । गुरु ब्राह्मण और देवताका द्रव्य चुरानेवाला पांडुरोगी होवे । नीच जातिकी स्त्रीसे भोग करनेवाला भी पांडुरोगी होवे, वह कृच्छ्चान्द्रायण व्रत करे, १६ टंक चांदीकी पृथ्वीका दान करै कामला रोगवाला सोनेका गरुड बनाकर दान करें और यही कुम्भकामला हलीमकवाला करे । जो पूर्व जन्ममें वैद्यकशास्त्रको पढकर अन्यथा औषधि देवे वह रक्तपित्तवाला रोगी होवे. वह चरु घृतका होम करे । बो ब्राह्मणका विनाश करे । वह क्षयरोगी होय १०८ निष्क सोनेको दान करे अथवा आधा दान करे, २४ ब्राह्मण जिमावे, १०... महादेवके मंत्रका जप करे। जो गर्वित होकर वृथा अभिमान करे, विना धर्मशास्त्र पढे सभामें प्रायश्चित्त कहें वह राजयक्ष्माका रोगी होय, ३० निष्क सोनेका दान, या गौका दान करे ॥ . कृतघ्नो जायते मर्त्यः कफवाञ्छ्वासकासवान् ॥ कृतघ्नी मनुष्य कफरोगी, श्वास खांसीवाला होवे। नोन और शहदका दान करे, १००० ब्राह्मणोंको भोजन करावै । गुरुकी वाणी Aho! Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 354 355 356 357 358 359 360 361 362