Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 355
________________ ( ३३४ ) योगचिन्तामणिः । [ प्रकरणम् जो मनुष्य पूर्व जन्ममें क्रूरकर्मके कर्त्ता, पापी, चुगलखोर होते हैं वे इस जन्म में शीतज्वरसे पीडित होते हैं, इसकी शांति के लिये " जातवेदसे' इस मन्त्रको १०००० दश हजार बार जपे, पीछे ब्राह्मण भोजन करावे तथा हजार कलशसे श्रीमहादेवजीका अभिषेक और १०० सौ ब्राह्मणोंको भोजन करावे यह माहेश्वरज्वर ( गरमज्वर ) में करे ॥ १ ॥ कुम्भदानविधि | मिट्टीका लाल घडा लाकर उसको चावलों पर स्थापित करे, उसको सफेद कपडे में लपेट देवे तथा तिल वा खांड अथवा जलसे उसको भरदेवे पीछे धूप, दीप फूल आदिसे उसका पूजन करे, कुम्भदानकी विधिसे दान कर देवे. गुरु ब्राह्मण इनकी भक्ति करे || यज्ञकी अनिका बुझानेवाला, तलाव बावडी आदिका तोडनेवाला व्यतिसाररोगवाला होवे. और जो अपनी साध्वी स्त्रीका परित्याग करे वो संग्रहणी रोगवाला होवे. दोनों अर्थात् अतिसारवाला और संग्रहणीवाला मनुष्य महादेवजी की रुद्रीके १०८ पाठ करे और दिव्य गोदान करे | धेनुदानविधि | दिव्य गौ लेकर गोदानपद्धतिकी रीतिसे उसका पूजन कर वेदपाठी ब्राह्मणको दान करे । जो मनुष्य गौको मोल लेकर दूने मोल से बेचे अथवा गौका व्यापार करे अथवा द्रव्य लेकर गौ पूजावे या द्रव्य लेकर देवता की पूजा करे तथा होम करावे, वह मनुष्य हर्षरोगी' होवे. इस कारण इतनी वस्तुओंको मोल न बेचै. इसकी शांति यह है कि घृत और सोनेका दान करे, अथवा सोनेकी गौका दान करे | Aho ! Shrutgyanam

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