Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas
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कर्मविपाक ] भाषाटीकासहितः। (३३३)
क्षुद्रास्यकर्णनासाक्षिशिरः स्त्रीबालकामयाः। विषं चेत्यमुमुद्दिश्य संग्रहेऽस्मिन्प्रकीर्तिता ॥९॥
ज्वर, अतीसार, संग्रहणी, बवासीर, अजीर्ण, हैजा, अलसक, विलम्ब, कृमिरोग, पाण्डु, और कामला, हलीमक, रक्तपित्त, क्षय उरक्षित, कास, श्वास, हिचकी, स्वरभङ्ग, अरुचि, कय, प्यास, मूर्छा इत्यादि तथा अत्यन्त मद्यपानसे उत्पन्न हुए रोग, दाह, पागलपन, मिरगी वायुरोग, वातरक्त, ऊरुस्तम्भ, आमवात, शूल, पित्तशूल, अफरा, उदावर्त, वातगुल्म, हृदयके रोग, सुजाक, मूत्राघात, पथरी, प्रमेह, मधुमेह, प्रमेहके फोडे, चर्बीके दोष, जलोदर, शोफ, घेघा, गण्डमाला, अपची, ग्रन्थि, अर्बुद, फीलपाव, विद्रधि, घाव, सुजन, भग्न, और नाडिके दो ज्वर, भगन्दर, गर्मी, शुकदोष, चर्मरोग, शीत, पित्त, उदर्द, कोठ, अम्लपित्त, विसर्प, विवाई, बाल गिरना, शीतला, मुख, कान, नाक, शिरके रोग, स्त्री और बालक, इनके रोग तथा विष इनकी मुख्यतापर इस ग्रन्थमें (औषध) कहे गये हैं ॥ ९ ॥
____ अथ कर्मफलम् । जन्मान्तरकृतं पापं व्याधिरूपेण बाधते । तच्छान्तिरौषधैर्दानै पहोमसुरार्चनैः ॥ १ ॥ - जन्मांतरका किया हुआ पाप इस जन्ममें रोगरूप होकर दुःख देता है, इस कारण उसकी शांति, औषधि, जप, दान, होम देवताओंके पूजनादि विधिसे करे. देव गुरुको दुःख देनेसे और पाप कमोंके करनेसे जो घोर रोग होते हैं, वे असाध्य हैं।
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