Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas
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( ३३६) योगचिन्तामणिः। [प्रकरणम्रोकनेवाला गद्गद वाणीवाला होता है । जो ब्राह्मणके बिना जिमाये जल पान या भोजन करे सो हिचकीका रोगी होवे । चैंटी, कौवा, कुत्तेको उच्छिष्ट देवे । सो छर्दि (वमन ) का रोगी होय । जो विश्वास देकर मारे सो छर्दिरोगी होवे । मार्ग चलनेसे थके मनुष्यको, गौको, ब्राह्मणको प्यासा रक्खे वह तृषारोगी तथा मूरोिगी होवै । जो शास्त्र पढकर सभामें धर्मका श्लोक न कहे, वह उन्माद पानात्यय व्याधिवाला होय, सरस्वती मंत्रका जप करे, सुवर्ण दान देवे। गौ वेचकर ऊंट खरीदनेवाला सर्वांगदाह रोगी होय । स्वामी गुरुका मारनेवाला मृगी रोगी होय, गणेशका मंत्र और सुवर्णका दान और ब्राह्मण भोजन करावे । जबरदस्ती पराई स्त्रीसे भोग करनेवाला संधिवात रोगी होय । जो वनको जलावे उसके उदरशूल होय । माता पिताके मैथुनका अनुमान करे उसके कर्णरोग होवे, पीछे बहरा होवे, घृत सोनेका दान करे । अपने वर्ण और स्वगोत्रकी स्त्रीसे गमन करनेसे बासरक्तका रोगी होय, सोनेकी लक्ष्मीनारायणकी प्रतिमा दान करे। होमकी अग्नि बुझानेवाला आमवात रोगी होय, १०००० गायत्रीका जप करे । पराये दिलका दुखानेवाला हृदयरोगी होवे । गुरुकी स्त्रीको भोगनेवाला मूत्रकृच्छ्री और सोजाक रोगी होय । लौंडेवाज मनुष्य मूत्राघाती और फिरंगवातरोगी होय । ब्रह्माकी सोनेकी मूर्ति दान करे। परस्त्रीगामी मनुष्यके पथरीरोग होय । कन्यागामी प्रमेहरोगी होय । मातागामी ज्वररोगी होय । भाईकी स्त्रीसे भोगकर्ता मनुष्य जलप्रमेही होय । चांद्रायण व्रत करे, चांदीका दान करे । चांडाली गमनसे प्रमेही और सर्वरोगी होय । जो ब्रह्मा, विष्णु महेश इनमें भेदबुद्धि करे, वह उदररोगी होय । जो पर्वतके अग्रभागमें, जलमें, पुलिनमें, नदी
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