Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 353
________________ ( ३३२) योगचिन्तामणिः। [प्रकरणम् .. इस मंत्रको पढकर सूर्यनारायणकी प्रार्थना करे और पुस्तकको नमस्कार करके पूर्वोक्त सुवर्णादिकोंको भेटकर रविकी तरफ पूर्व मुख करके बैठे पीछे ज्योतिषी पुस्तकको देखकर जो कहे उसे श्रद्धापूर्वक श्रवण करे जब धर्मविपाक सुन चुके तब यथाशक्ति उसका जप होम दानादि करे जिन रोगोंके कर्मविपाकमें जैसा कहेंगे ॥ १-२॥ रोगोंके नाम । ज्वरोऽतिसारो ग्रहणी अर्शोऽजीर्णो विषूचिका । अल सश्च विलम्बी च कृमिरुक्पाण्डुकामला ॥१॥ हलीमकं रक्तपित्तं राजयक्ष्मा उरक्षितम् । कासो हिका सहश्वासः स्वरभेदस्त्वरोचकम ॥२॥ छर्दिस्तृष्णा च मूछाया रोगाः पानात्ययादयः। दाहोन्मादावपस्मारः कथितोऽथानिलामयः ॥३॥ बातरक्तमुरुस्तम्भ आमवातोथ शूलरुक् । । पित्तजं शूलमानाह उदावर्तोथ गुल्मरुक् ॥ ४॥ हृद्रोगो मूत्रकृच्छं च मूत्राघातस्तथाऽश्मरी। प्रमेहो मधुमेहश्च पिडिकाच प्रमेहजाः॥५॥ मेदो दोषोदरं शोथो वृद्धिश्च गलगण्डका।। गण्डमालाऽपचीग्रंथिरबुदं श्लीपदं तथा ॥ ६॥ विद्रधिव्रणशोफाश्च द्वौ व्रणौ भग्नाडिको । भगन्दरोपदंशौ च शूकदोषास्त्वगामयाः ॥ ७॥ शीतपित्तमुदईश्च कोठश्चैवाऽम्लपित्तकम् ।। विसर्पश्च सविस्फोटः सरोमांत्यो मसूरिका ॥ ८॥ Aho! Shrutgyanam

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