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प्रथमः ]
भाषाटीकासहितः ।
( ३७ )
प्रकार के कफरोग चालीस प्रकार के पित्तके रोग, अठारह प्रकारके अवर और अनेक मिश्रित रोग, श्वास रोग, खाँसी रोग, क्षीणता आदि और नाक, नेत्र, कान, मुख, शीसके रोग ये सब इसके खानेसे दूर होवें, इसी मात्राके अनुसार इसमेंसे वैद्य आधी और चौथाई भी बनालेवे ॥ १-३ ॥
आम्रपाक ।
पक्कचूतरसो द्रोणः पादःस्याच्छुद्धगन्धकः । घृतमर्द्ध ततो योज्यं चतुर्थांशांशनागरम् ॥ १ ॥ तदर्द्ध मरिचं देयं तदर्द्ध पिप्पली मता । तोयं खण्डसमं देयं सर्वमेकत्र कारयेत् ॥ २ ॥ पाचयेन्मृन्मये भाण्डे काष्ठदय प्रचालयेत् । चूर्णान्येषां ततो दद्यान्मात्रापलचतुष्टयम् ॥ ३ ॥ ग्रन्थिकं मुस्तकं चव्यं धान्याकं जीरकद्वयम् । शुठीभकेशरं त्वक् च तालीसं तु पृथक् पृथक् ॥ ४ ॥ सिद्धशीते च मधुनः प्रस्थं तत्सर्वमेकतः । सन्नीयकर्तिकां कृत्वा शुभे भाण्डे निधापयेत् ॥ ५ ॥
उत्तम पके और मीठे आमका रस १ द्रोण ( १६३८४ टंक ) लेवे और रसकी चौथाई खांड लेवे और खांडसे आधा गौका घृत लेवे, घृतसे चौथाई सोंठ लेवे और सोंठसे आधी मिर्च और मिर्च से आधी पीपल लेनी चाहिये, इसमें जल खांड के समान डाले इन सबको एकत्र करके स्वच्छ मिट्टीके पात्रमें पाक करे, लकडीकी करछी से चलाता जाय, पीछे इसमें इतनी औषधियोंका चूर्ण चार चार पक ढाले । सो लिखते हैं- पीपलामूल, नागरमोथा, चव्य, धनियां दोनों
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