Book Title: Yog Chintamani Satik
Author(s): Harshkirtisuri
Publisher: Gangavishnu Shrikrishnadas

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Page 330
________________ सप्तमः ] भाषाटीकासहितः । (३०९ ) सेंक करनेसे जो स्वेद उत्पन्न होता है । वह स्वेद वात करके जितने रोग उत्पन्न होते हैं उन सबका नाश करता है । पुरुषकी बराबर पृथ्वी में लम्बा गढा खोदकर खैरसार की लकडी उसमें जलावे पीछे अंगारोंको उसमें से निकाल कर दूध, कांजी या धानके पानी से बुझाकर अंडके पत्तोंको ऊपर नीचे लगाकर और मनुष्यको सुलाकर स्वेदन करे ॥ ५ ॥ कटाहे कोष्टके वापि सूपविष्टो विगाहयेत् । नाभेः षडंगुलं यावन्मनः काथस्य धारया ॥ ९॥ कोष्ठे च स्कन्धयोः सिक्तस्तिष्ठेत्स्निग्धतनुर्नरः । एवं तैलेन दुग्धेन सर्पिषा स्वेदयेन्नरः ॥ १० ॥ कढाही वा किसी और पात्रमें मनुष्यको बैठाकर स्वेदन करे, जबतक काढेकी धारासे ट्रेंडी छः अंगुन ऊंची रहे अर्थात टुंडीके नीचे जल रहे तबतक उसमें बैठा रहने और काढेकी धारा से ( कोठा ) और कन्धों को सेंके उसी प्रकार मनुष्य खड़ा है, इसी प्रकार तेल दूध और घृतसे स्वेदन करे ॥ १० ॥ अथ बन्धनम् । तप्तभस्मनृमूत्रेणात्युष्णा गर्दभविट् तथा । उष्णं सर्षपपिण्याकं तैलं कोष्णा च गाढमृत् ॥ १ ॥ स्निग्धोष्णान्यर्कपत्राणि मधुकं वटपत्रकैः । स्वेदयित्वा च बध्नीयादुदराध्मानशान्तये ॥ २ ॥ गरम राख मनुष्य के सूत्र में सानकर बांधे तथा गधेकी गरम लीद बांधे वा सरसोंकी गरम खल वांधे अथवा जहां घानीके बैल चला. Aho ! Shrutgyanam "

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